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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 497 प्रजापतिः कल्पितयज्ञ भागं शैलाधि पत्यं स्वयमन्वतिष्ठत।। 1/17 हिमालय को स्वयं [प्रजापति] ब्रह्माजी ने उन पर्वतों का स्वामी बना दिया, जिन्हें यज्ञ में भाग पाने का अधिकार मिला हुआ है। अभिलाष मुदीरितेन्द्रियः स्वसुतायामकरोत्प्रजापतिः।। 4/41 ब्रह्माजी ने सृष्टि करते समय जब सरस्वती को उत्पन्न किया था, उस समय कामदेव ने उनके मन में ऐसा पाप भर दिया कि वे सरस्वती के रूप पर मोहित हो गए और उससे संभोग की इच्छा करने लगे। अस्मिन्द्वये रूपविधान यत्नः पत्युः प्रजानां विफलोऽभविष्यत्।। 7/66 ब्रह्माजी ने इन दोनों का रूप गढ़ने में जो परिश्रम किया, वह सब अकारण ही था। 10. प्रजेश्वर:-पुं० [प्रजानां ईश्वरः] ब्रह्मा। संक्षये जगदिव प्रजेश्वरः संहरत्य हर सावहर्पतिः। 8/30 जैसे प्रलय के समय ब्रह्माजी सारे संसार को समेट लेते हैं। 11. ब्रह्माः-पुं० [बृंहति वर्द्धतेः यः। बृहि वृद्धौ+ बृह!ऽच्च' इति मनिन नकारस्याकारश्च] ब्रह्मा। तेषामाविरभूद् ब्रह्मा परिम्लानमुखश्रियाम्।। 2/2 जब उदास मुंह वाले देवताओं के सामने, ब्रह्माजी उसी प्रकार प्रकट हो गए। स च त्वदेकेषु निपात साध्यो ब्रह्माङ्ग भूर्ब्रह्मणि योजितात्मा। 3/15 इसलिए मंत्र के बल से ब्रह्म में ध्यान लगाए हुए महादेव जी की समाधि, तुम्ही अपने एक बाण से तोड़ सकते हो। 12. वागीश :-ब्रह्मा। वागीशं वाग्भिराभिः प्रणिपत्योपत स्थिरे ।। 2/3 ब्रह्माजी को प्रणाम करके बड़े भेद भरे शब्दों में यह स्तुति करने लगे। 13. विधातृ-[विधाता]-ब्रह्मा। शेषाङ्ग निर्माण विधौ विधातुर्लावण्य उत्पाद्य इवास यत्नः। 1/3 शेष अंगों को बनाने के लिए सुंदरता की और सामग्रियाँ फिर जुटाने में ब्रह्माजी को बड़ा कष्ट उठाना पड़ा था। स्वयं विधाता तपसः फलानां केनापि कामेन तपश्चचार।। 1/57 सब तपस्याओं का फल देने वाले शिवजी ने न जाने किस फल की इच्छा से तप करना प्रारंभ कर दिया। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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