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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 754 6. 7. 8. 1. www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साद्य महल, प्रासाद, भवन, मंदिर । अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले स्थातव्यं । पू० मे० 38 हे मेघ ! यदि तुम महाकाल के मंदिर में साँझ होने के पहले पहुँच जाओ तो वहाँ तब तक ठहरना । सौध - विशाल भवन, महल, बड़ी हवेली । तामुन्निद्रामवनिशयनां सौधवातायनस्थः । उ० मे० 28 मेरे भवनों के झरोखों पर बैठकर उसे देखना, वह तुम्हें धरती पर उनींदी सी पड़ी मिलेगी। हस्त कालिदास पर्याय कोश हर्म्य - [ हृ + यत्, मुट् च] प्रासाद, महल, भवन । बाह्योद्यान स्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौत हर्म्या । पू० मे० 7 जहाँ के भवनों में, बस्ती के बाहर वाले उद्यान में बनी हुई शिवजी की मूर्ति के सिर पर जड़ी हुई चंद्रिका से सदा उजाला रहा करता है। हर्म्येष्वस्याः कुसुमसुरभिष्वध्वखेदं न येथा लक्ष्मीं पश्यं । पू० तब तुम फूलों के गंध से महकते हुए वहाँ के उन भवनों की सजावट देखकर अपनी थकावट दूर कर लेना । यस्यां यक्षाः सितमणिमयान्येत्य हर्म्यस्थलानि । उ० मे० 5 वहाँ के यक्ष स्फटिक मणि से बने हुए अपने उन भवनों पर बैठते हैं। For Private And Personal Use Only मे० 36 कर - [कृ (कृ) + अप्] हाथ । प्रत्यावत्तस्त्वयि कर रुधि स्यादनल्पाभ्यसूयः । पू० मे० 43 उनको मत ढकना, तुम उनके हाथ न रोक बैठना, नहीं तो वे बुरा मान जाएँगे । तस्या: किंचित्करधृतमिव प्राप्तवानीर शाखं । पू० मे० 45 अपनी बेंत की लताओं के सदृश हाथों से अपने वस्त्र थामे हुए है। दामोक्तव्यामयमितखेनैकवेणीं करेण । उ० मे० 30 वह अपने बढ़े हुए नखों वाले हाथ से अपनी उस इकहरी चोटी के रूखे और उलझे हुए बालों को हटा रही होगी ।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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