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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् __737 वह प्रेमी (यक्ष) अपनी पत्नी से बिछुड़कर उस पहाड़ी पर जैसे-तैसे। काम क्रीडा विरहित विप्रयुक्त विनोदः। उ० मे० 63 वियोग के समय उन लोगों का भी मन बहलावेगी जिन्हें विलास मिला ही नहीं। विप्रयोग - [ वि + प्र + युज् + घञ्] वियोग, अलगाव। सद्यः पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि। पू० मे०१ स्त्रियों के जो हृदय अपने प्रेमियों से बिछुड़ने पर एक क्षण टिके नहीं रह सकते। नाप्यन्यस्मात्प्रणय कलहाद्विप्रयोगोपपत्तिः। उ० मे० 4 प्रेम में रूठने को छोड़कर और कभी किसी का किसी से बिछोह नहीं होता। मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोगः। उ० मे० 58 प्यारी बिजली से एक क्षण के लिए भी तुम्हारा वैसा वियोग न हो, जैसा मैं भोग रहा हूँ। 4. वियुक्त - [ वि + युज + क्त] जुदा किया हुआ, अलग किया हुआ। अव्यापन्नः कुशलमबले पृच्छति त्वां वियुक्तः। उ० मे० 43 हे अबला! तुम्हारा बिछुड़ा हुआ साथी तुम्हारी कुशल जानना चाहता है। 5. वियोग - [ वि + युज् + घञ्] जुदाई, विच्छेद, विरह। सव्यापारामहनि न तथा पीडयेन्मद्वियोगः। उ० मे० 28 काम में लगे रहने के कारण दिन में तो उसे मेरा बिछोह कुछ नहीं सताता होगा पर। गाढोष्माभिः कृतमशरणंत्वद्वियोग व्यथाभिः। उ० मे० 51 इस तिल-तिल जलाने वाली बिछोह की जलन से तो जी बैठ जा रहा है। विरह - [वि + रह् + अच्] बिछोह, वियोग। कश्चित्कान्ता विरह गुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः। पू० मे० 1 उसका ध्यान दिन-रात उससे दूर स्त्री में ही लगा रहता था। इसी बेसुधी में उसने अपने काम में कुछ ऐसी भूल कर दी। सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्तीकायें। पू० मे0 31 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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