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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 732 www. kobatirth.org 2. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश वेणीभूतप्रतनुसलिलाऽसावतीतस्य सिन्धुः । पू० मे० 31 देखो मेघ ! नदी की धारा तुम्हारे बिछोह में चोटी के समान पतली हो गई होगी। तस्याः सिन्धोः पृथुमपि तनुं दूरभावात्प्रवाहम् । पू० मे० 50 हे मेघ ! दूर से पतली दिखाई देने वाली उस नदी की चौड़ी धारा के बीच में तुम ऐसे दिखाई दोगे । 13. सुरपति सखा [सुरपति + सखा] बादल । इत्याख्याते सुरपतिसखः शैलकुल्यापुरीषु स्थित्वा स्थित्वा । उ० मे० 62 यह सुनकर बादल वहाँ से चल दिया और कभी पहाड़ियों पर, कभी नदियों के पास और कभी नगर में ठहरता हुआ । रत्न 1. मणि [मण् + इन्] आभूषण, रत्न, मूल्यवान जवाहर । शष्पश्यामान्मरकतमणीनुन्मयूखप्ररोहान् । पू० मे0 34 बड़े-बड़े रत्न गुँथे होंगे और कहीं पर नई घास के समान नीले और चमकीले नीलम बिछे दिखाई देंगे। सोपानत्वं कुरु मणितटारोहणायाग्रयायी । पू० मे0 64 आगे बढ़कर मणि-शिखरों पर चढ़ने वाली सीढ़ी के समान बन जाना। रत्न - [ रमतेऽत्र, रम् + न, तान्तादेशः ] मणि, आभूषण । रत्नच्छायाव्यतिकर इव प्रेक्ष्य पुरस्ताद् वाल्मीकाग्रात्प्रभवति धनुः खण्डमाखण्डलस्य । पू० मे० 15 यहाँ सामने बाँबी के ऊपर उठा हुआ इंद्रधनुष का एक टुकड़ा ऐसा सुन्दर दिखाई पड़ रहा है, मानो बहुत से रत्नों की चमक, एक साथ यहाँ लाकर इकट्ठी कर गई हो । For Private And Personal Use Only रत्नच्छायाखचितबलिभिश्चामरैः क्लान्तहस्ताः । पू० मे० 39 जिनके हाथ, कंगन के नगों की चमक से दमकते हुए दण्ड वाले चँवर डुलाते-डुलाते थक गए होंगे।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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