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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org मेघदूतम् वहाँ थकावट मिटाकर, तुम नदियों के तीरों पर उपवनों में खिली हुई जूही की कलियों को अपनी फुहारों से सींचते हुए । तस्यास्तीरे रचितशिखरः पेशलैरिन्द्रनीलैः । उ० मे० 17 उसके तीर पर एक बनावटी पहाड़ है, जिसकी चोटी नीलमणि की बनी हुई है। 3. रोध - [ रुध् + असुन्] किनारा, ऊँचा तट । तस्याः किंचित्करधृतमिव प्राप्तवानीरशाखं हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्त रोधो नितम्बम् । पू० मे० 45 मानों अपने तट के नितम्बों पर से अपने जल के वस्त्र खिसक जाने पर, लज्जा से बेंत की लताओं के हाथों से अपने जल का वस्त्र थामे हुए हो । दिवस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. अहन् – [ न जहाति व्यजति सर्वथा परिवर्तन, न + हा + कनिन्, न० त०] दिन, दिन का समय । - 701 सव्यापारामहनि न तथा पीडयेन्मद्वियोगः । उ० मे० 28 इन कामों में लगे रहने के कारण दिन में तो उसे मेरा बिछोह कुछ नहीं सताता होगा । साश्रेऽह्रीव स्थलकमलिनीं न प्रबुद्धां न सुप्ताम् । उ० मे० 32 जैसे बदली के दिन धरती पर खिलने वाली कोई आधी खिली कमलिनी हो । सर्वावस्थास्वहरपि कथं मन्दमन्दातपं स्यात् । उ० मे० 51 दिन की तपन भी किसी प्रकार सदा के लिए जाती रहे । 2. दिवस [ दीव्यतेऽत्र दिव + असच् क्विच्] दिन, दिवस । For Private And Personal Use Only आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणत गजप्रेक्षणीयं ददर्श । पू० मे० 2 आषाढ़ के पहले ही दिन वह देखता क्या है कि सामने पहाड़ी की चोटी से लिपटा हुआ बादल ऐसा लग रहा है, मानो कोई हाथी अपने माथे की टक्कर से मट्टी के टीले को ढाहने का खेल कर रहा हो । तां चावश्यं दिवस गणनातत्परामेकपत्नीम् । पू० मे० 9
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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