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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 688 कालिदास पर्याय कोश ऊँचे-ऊँचे भवनों वाली अलका पर वर्षा के दिनों में बरसते हुए बादल ऐसे छाए रहते हैं, जैसे कामिनियों के सिर पर मोती गुंथे हुए जूड़े। हस्ते लीलाकमलमलके बालकुन्दानुविद्धं। उ० मे० 2 हाथों में कमल के आभूषण पहनती हैं, अपनी चोटियों में नये खिले हुए कुन्द के फूल गूंथती हैं। गत्युत्कम्पादलकपतितैर्यत्र मन्दारपुष्पैः पत्रच्छेदैः । उ० मे० 11 जब जल्दी - जल्दी पैर बढ़ाकर जाने लगती हैं, उस समय उनकी चोटियों में गुंथे हुए कल्पवृक्ष के फूल और पत्ते खिसककर निकल जाते हैं। हस्तन्यस्तं मुखमसकलव्यक्ति लम्बालकत्वादिन्दोदैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्ते बिभर्ति। उ० मे० 24 चिन्ता के कारण गालों पर हाथ धरने से और बालों के मुँह पर आ जाने से उसका अधूरा दिखाई देने वाला मुँह मेघ से ढके हुए चन्द्रमा के समान धुंधला और उदास दिखाई दे रहा होगा। शुद्धस्नानात्परुषमलकं नूनमागण्डलम्बम्। उ० मे० 33 कोरे जल से नहाती होगी, इसलिये उसके रूखे और बिना संवारे हुए बाल, उसके गालों पर लटककर। रुद्धापाङ्गप्रसरमलकैरञ्जनस्नेहशून्यं । उ० मे० 37 जिस पर बाल फैले हुए होंगे, जो आँजन न लगाने से रूखी हो गई होंगी। केश - [क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च] बाल, सिर के बाल। जालोद्गीणैरुपचित वपुः केशसंस्कारधूपैः। पू० मे० 36 स्त्रियों के बालों को सुगंधित करके, अगरू की धूप का जो धुआँ झरोखों से निकलता होगा उससे तुम्हारा शरीर बढ़ेगा। शंभोः केश ग्रहणमकरादिन्दोलग्नोर्मिहस्ता। पू० मे० 54 वे अपनी लहरों के हाथ चंद्रमा पर टेककर शिवजी के केश पकड़कर। वकाच्छायां शशिनि शिखिनां बर्हमारेषु केशान्। उ० मे० 46 चन्द्रमा में तुम्हारा मुख, मोरों के पंखों में तुम्हारे बाल देखा करता हूँ। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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