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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 675 मेघदूतम् कश्चित्कान्ताविरह गुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः शापेनास्तंगमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः। पू० मे० 1 कुबेर ने ललकार कर उसे यह कहकर देश निकाला दे दिया कि अब एक वर्ष तक तू अपनी पत्नी (स्त्री) से नहीं मिल पायेगा। यस्योपान्ते कृतकतनयः कान्तया वर्धितो मे हस्तप्राप्यस्तबकनमितो बालमन्दारवृक्षः। उ० मे0 15 उसी के पास एक छोटा सा कल्पवृक्ष है, जिसे मेरी स्त्री ने अपने पुत्र के समान पाल रखा है। वह फूलों के गुच्छों से इतना झुका हुआ होगा कि खड़े-खड़े ही वे गुच्छे हाथ से तोड़े जा सकते हैं। तालैः शिञ्जीवलयसुभगैर्नर्तितः कान्तया मे यामध्यास्ते दिवसविगमे नीलकण्ठः सुहृदयः। उ० मे० 19 तुम्हारा मित्र मोर नित्य साँझ को बैठा करता है, और मेरी स्त्री उसे अपने घुघरूदार कड़ेवाले हाथों से तालियाँ बजा-बजा कर नचाया करती है। स त्वं रात्रौ जलद शयनासन्नवातायनस्थः कान्तां सुप्ते सति परिजने वीतनिद्रामुपेयाः। उ० मे० 29 इसलिए तुम उसके पलँग के पास वाली खिड़की पर बैठकर थोड़ी देर परखना और जब वे सखियाँ सो जायँ, तब रात को मेरी जागती हुई प्यारी स्त्री के पास पहुँच जाना। कामिनी - [कम् + णिनि + ङीष्] प्रिय स्त्री, मनोहर और सुन्दर स्त्री। या वः काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमाना मुक्ताजाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्। पू० मे० 67 ऊँचे-ऊँचे भवनों वाली अलका पर वर्षा के दिनों में बरसते हुए बादल ऐसे छाए रहते हैं, जैसे कामिनियों (स्त्रियों) के सिरों पर मोती गुंथे हुए जूड़े। मुक्ताजालैः स्तनपरिसरच्छिन्नसूत्रैश्च हारैनैंशोमार्गः सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्। उ० मे० 11 हारों से टूटे हुए मोती भी इधर-उधर बिखर जाते हैं, जब दिन निकलता है तो इन वस्तुओं को मार्ग में बिखरा हुआ देखकर लोग समझ लेते हैं कि वे कामिनी स्त्रियाँ किधर-किधर से होकर अपने प्रेमियों के पास पहुंची थीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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