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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् 671 तन्मध्ये च स्फटिकफलका काञ्चनी वासयष्टिद्ले बद्धा मणिभिरनति प्रौढ़वंशप्रकाशैः। उ० मे० 19 उनके बीच में चमकीले मणियों से बनी हुई एक चौकी है, जिस पर स्फटिक की एक चौकोर पटिया रखी हुई है। उस पटिया पर जड़ी हुई एक सोने की छड़ पर तुम्हारा मित्र मोर आकर बैठा करता है। 3. हेम- [हि + मन्] सोना प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्सराजोऽत्र जह्वे तालदुमवनमभूदन तस्यैव राज्ञः। पू० मे0 35 वत्स देश के राजा ने प्रद्योत की प्यारी कन्या को हरा था, यहीं उनका बनाया हुआ पेड़ों का सुनहरा उपवन था। हेमाम्भोजपुसवि सलिलं मानसस्याददानः कुर्वन्कामं क्षणमुखपटप्रीति मैरावतस्य। पू० मे० 66 तुम उस मानसरोवर का जल पीना जिसमें सुनहरे कमल खिला करते हैं, फिर ऐरावत के मुंह पर थोड़ी देर कपड़े-सा छाकर उसका मन बहला देना। वापी चास्मिन्मरकतशिलाबद्धसोपान मार्गा हेमैश्छन्ना विकचकमलैः स्निग्धवैदूर्य नालैः। उ० मे0 16 एक बावड़ी मिलेगी जिसकी सीढ़ियों पर नीलम जड़ा हुआ है और जिसमें चिकने वैदूर्य मणि की डंठल वाले बहुत से सुनहरे कमल खिल रहे हैं। कल्पदम . कल्पदुम [कृप् + अच्, घन वा + दुभः] स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग, इच्छानुरूप फल देने वाला वृक्ष। धुन्वन्कल्पदुम किसलयान्यंशुकानीव वातैर्नानाचेष्टैर्जलद ललितैर्निर्विशेस्तं नगेन्द्रम। पू० मे0 66 देखो मेघ! वहाँ जाकर कल्पदुम के कोमल पत्तों को महीन कपड़े की भाँति हिला देना। ऐसे बहुत से खेल करते हुए कैलास पर्वत पर जी भरकर घूमना। 2. कल्पवृक्ष - [कृप + अच्, घञ् वा + वृक्षः] स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग, इच्छानुरूप फल देने वाला वृक्ष। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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