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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 652 कालिदास पर्याय कोश धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस्तं मयूरं पश्चादद्रिग्रहणगुरुभिर्गर्जितैर्नर्तयेथा।। पू० मे० 48 तुम अपनी गरज से पर्वत की गुफाओं को गुंजा देना, उसे सुनकर स्वामी कार्तिकेय का वह मोर नाच उठेगा, जिसके नेत्रों के कोने, शिवजी के सिर पर धरे हुए चन्द्रमा की चमक से दमकते रहते हैं। प्रालेया।रुपतहमतिक्रम्य ताँस्तान्विशेषान्हंस द्वारं भृगुपति यशोवर्त्म यत्क्रौञ्चनन्ध्रम्।। पू० मे० 61 हिमालय पर्वत के आस-पास जितने सुहावने स्थान हैं, उन सबको देखकर तुम उस क्रौञ्चरंध्र में होते हुए उत्तर की ओर जाना, जिसमें से होकर हंस मानसरोवर की ओर जाते हैं और जिसे परशुरामजी, अपने बाण से छेदकर अपना नाम अमर कर गए हैं। शोभामरेः स्तिमित नयन प्रेक्षणीयां भवित्रीम्संन्यस्ते सति हल भृतो मेचके वाससीव। पू० मे० 63 जब तुम कैलास पर्वत के ऊपर पहुँचोगे, उस समय तुम मेरी समझ में बलराम के कंधों पर पड़े हुए चटकीले काले वस्त्र के समान ऐसे मनोहर लगोगे कि आँखें एकटक होकर तुम्हें ही देखती रह जाएँ। तस्मादद्रेनिगदितमथो शीघ्रमेत्यालकायां यक्षागारं विगलित निभं दृष्टिचिरैर्विदित्वा। उ० मे० 59 वह बादल रामगिरि पर्वत से चलकर अलका पहुँच गया और बताए हुए चिह्नों को देखकर उसने यक्ष का वह भवन पहचान लिया, जिसकी शोभा फीकी पड़ गई थी। 3. गिरि - [गृ + इ किच्च] पहाड़, पर्वत। नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतोस्त्वत्संपर्कात्पुलकितमिव प्रौढ़पुष्पैः कदम्बैः। पू० मे० 27 तुम 'नीच' नाम की पहाड़ी पर थकावट मिटने के लिए उतर जाना। वहाँ पर फूले हुए कदंब के वृक्षों को देखकर ऐसा जान पड़ेगा, मानो तुमसे भेंट करने के कारण उनके रोम-रोम फहरा उठे हों। नीचैर्वास्यत्युपजिगमिषोर्देवपूर्वं गिरिं ते शीतो वायुः परिणमयिता काननोदुम्बराणाम्। पू० मे० 46 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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