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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 641 वह रोती हुई वसन्त से बोली, हे वसन्त ! बताओ तो, तुम्हारे मित्र की यह दशा कैसे हो गई। मन्द 1. मन्द :-[मन्द्+अच्] धीमा, अकर्मण्य, सुस्त, मंद, तटस्थ, उदासीन। अलोक सामान्यमचिन्त्य हेतुकं द्विषन्ति मन्दाश्चरितं महात्मनाम्। 5/75 जो खोटे लोग होते हैं, वे उन महात्माओं के अनोखे कामों को बुरा बताते ही हैं, • जिन्हें पहचानने की उनमें योग्यता नहीं होती। 2. मूढ़ :- [मुह्+क्त] मूर्ख, बुद्ध, नासमझ, जड़, अज्ञानी। मूढं बुद्धमिवात्मानं हैमीभूतमिवायसम्। 6/55 मैं अपने को आज ऐसा समझ रहा हूँ, मानो मुझ मूर्ख को ज्ञान मिल गया हो। मीन 1. मीन :-मछली। स व्यगाहत तरंगिणीमुमामीनपंक्तिपुनरुक्त मेखला। 8/26 कभी पार्वती जी उस आकाशगंगा में जल विहार करने लगतीं, जहाँ उनकी कमर के चारों ओर खेलने वाली मछलियाँ ऐसी लगती थीं, मानो उन्होंने दूसरी करधनी पहन ली हो। 2.शफरी :-[शफ राति-रा+क+ई] एक प्रकार की छोटी चमकीली मछली। शफरीं ह्रदशोष विक्लवाँ प्रथमा वृष्टिरिवान्वकम्पयत्। 4/39 जैसे अचानक बरसने वाली वर्षा की पहली बूंदें सूखते हुए तालाब की व्याकुल मछलियों को जिला देती है। मृग 1. मृग :-[मृग +क] चौपाया जानवर, हरिण, बारहसिंगा, कस्तूरी। तया गृहीतं नु मृगाङ्गनाभ्यस्ततो गृहीतं नु मृगाङ्गनाभिः। 1/46 यह कला उन्होंने हरिणियों से सीखी थी या हरिणियों ने ही उनसे सीखी थी। प्रस्थं हिमाद्रे मंगनाभिगंधि किंचित्कवणत्किंनरमध्युवास। 1/54 शंकर जी कस्तूरी की गंध में बसी हुई हिमालय की एक ऐसी सुन्दर चोटी पर जाकर तप करने लगे, जहाँ गन्धर्व दिन-रात गाते रहते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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