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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 635 इस प्रकार अपनी प्राण प्यारी के साथ सांसारिक और स्वर्गीय दोनों सुख भोगते हुए। 4. हर्ष : - [ हृष्+घञ् ] आनन्द, खुशी, प्रसन्नता, संतोष, उल्लास। सप्रियामुखरसं दिवानिशं हर्षवृद्धिजननं सिषेविषुः 18 / 90 प्रियतमा के सुख बढ़ाने वाले ओठों का रस दिन-रात पीने की इच्छा करने वाले शंकर जी की यह दशा हो गई। बभौ 1. बभौ : - जगमगाना, सुन्दर प्रतीत होना, प्रतीत होना, लगना । तया व्याहृत संदेशा सा बभौ निभृता प्रिये । 6/2 प्रेम में पगी हुई पार्वती जी अपनी सखी के मुँह से महादवजी को यह संदेश कहलाती हुई, वैसी ही सुशोभित हुईं। बभौ च संपर्क मुपेत्य बाला नवेव दीक्षा विधिसायकेन । 7/8 इस नये विवाह का बाण कमर में खोंसकर पार्वती जी ऐसे चमकने लगीं। नवं नवक्षौम निवासिनी सा भूयो बभौ दर्पण मादधाना । 7 / 26 नई साड़ी पहने हुए और हाथ में नये दर्पण लिए हुए वे ऐसी लगने लगीं। सतहुकूलाद विदूर मौलिर्बभौ पतद्गंग इवोत्तमांगे। 7/41 शिवजी के सिर के पास छत्र से लटकता हुआ कपड़ा ऐसा जान पड़ता था, मानो गंगाजी की धारा ही गिर रही हो । 2. राज :- चमकना, सुन्दर प्रतीत होना, प्रतीत होना, जगमगाना । तस्याः प्रविष्टा नतनाभिरन्ध्रं रराजतन्वीनवलोमराजि: । 1/38 नाड़े के ऊपर गहरी नाभि तक पहुँची हुई और नये यौवन के आने के कारण बालों की जो नई उगी पतली रेखा बन गई थी, उसे देखकर ऐसा जान पड़ता था। निर्वत्तपर्जन्य जलाभिषेका प्रफुल्लकाशा वसुधेव रेजे। 7/11 मानो गरजते हुए बादलों के जल से धुली हुई और कांस के फूलों से भरी हुई धरती शोभा दे रही हो । बलि 1. बलि : - [ बल् + इन्] आहुति, भेंट चढ़ावा, पूजा, आराधना । For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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