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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 626 कालिदास पर्याय कोश सुराः समभ्यर्थयितार एते कार्यं त्रयाणामपि विष्टपानाम्। 3/25 एक तो सब देवता लोग तुमसे इस काम के लिए भीख माँग रहे हैं, दूसरे यह कार्य तीनों ही लोक वालों का है। द्युति 1. द्युति :-स्त्री० [द्युत्+इन्] दीप्ति, उजाला, कान्ति, सौन्दर्य । किमिंद द्युतिमात्मीयां न बिभ्रति यथा पुरा। 2/19 पर यह तो बताइये, कि आप लोगों के मुंह की पहले वाली कान्ति कहाँ चली गई। ते प्रभामण्डलैफ्रेम द्योतयन्तस्तपोधनाः। 6/4 स्मरण करते ही अपने तेजोमण्डल से उजाला करते हुए वे सातों तपस्वी आकर खड़े हो गए। 2. प्रकाश :-(वि०) [प्र+का+अच्] दीप्ति, कान्ति, आभा, उज्ज्वलता। यत्रौषधि प्रकाशेन नक्तं दर्शित संचराः। 6/43 बरसात के दिनों में रात को चमकने वाली जड़ी-बूटियाँ ऐसा प्रकाश देती थीं कि वहाँ। 3. प्रभा :-[प्र+भा+अङ्+टाप्] प्रकाश, दीप्ति, कान्ति, चमक। तया दुहित्रा सुतरां सवित्री फुरत्प्रभामण्डलया चकासे। 1/24 वैसे ही तेजामण्डल से भरे मुख वाली कन्या को गोद में पाकर मेना खिल उठीं। ते प्रभमण्डलैौम द्योतयन्तस्तपो धनाः। 6/4 स्मरण करते ही अपने तेजोमण्डल से उजाला करते हुए वे सातों तपस्वी आकर खड़े हो गए। 4. भास :-[स्त्री०] [भास्+क्विप्] प्रकाश, कान्ति, चमक। दिवापि निष्ठयूतमरीचिभासा बाल्यादनाविष्कृतलाञ्छनेना। 7/39 जो चन्द्रमा दिन में भी अपनी किरणें चमकाता था और जिसके छोटे होने के कारण उसका कलंक दिखाई नहीं देता था। 5. रुचा :-[स्त्री०] [रूच्+टाप्] प्रकाश, कांति, उज्ज्वलता। अथोपनिन्ये गिरिशाय गौरी तपस्विने ताम्ररुचा करेण। 3/60 उधर पार्वती जी ने प्रणाम करके समाधि से जगे हुए शंकरजी के गले में अपने लाल-लाल हाथों से। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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