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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 598 कालिदास पर्याय कोश 3. संरम्भ :-[सम्+र+घञ्, मुम्] क्रोध, रोष, कोप, डल्लड़। सपदि मुकुलिताक्षीं रुद्रसंरम्भभीत्या। 3/76 महादेवजी के क्रोध से डरकर आँख बन्द करके जाती हुई। कौमुदी 1. कौमुदी :-[कौमुदी+ङीप्] चाँदनी। शशिना सहयाति कौमुदी सहमेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33 चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। कला च साकान्तिमती कलावतस्त्वमस्य लोकस्य चनेत्रकौमुदी। 5/71 एक तो चन्द्रमा की कला के, जो उनके माथे पर है और दूसरे आपके, जो संसार के नेत्रों को खिलाने वाली हैं। चन्द्रिका :-[चन्द्र+ठन्+टाप्] चाँदनी, ज्योत्स्ना। उन्नतावनत भाववत्तया चन्द्रिकासतिमिरा गिरेरियम्। 8/69 पहाड़ के ऊँचे नीचे होने से कहीं तो चाँदनी पड़ रही है और कहीं अँधेरा है। रोहितीव तव गण्डलेखयोरुल्लसत्प्रकृतिजप्रसादयोः। 8/74 अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता से खिले हुए तुम्हारे गाल ऐसे लग रहे हैं, मानो उस पर चाँदनी चढ़ती आ रही हो। 3. ज्योत्स्ना :-[ज्योतिरस्ति अस्याम्-ज्योतिस्+न, उपघालोपः] चाँदनी। पुपोष लावण्यं मयान्विशेषाञ्जयोत्स्नान्तराणीव कलान्तराणि 1/25 जैसे चाँदनी बढ़ने के साथ-साथ चन्द्रमा की और सभी कलाएँ भी बढ़ने लगती हैं, वैसे ही ज्यो-ज्यों पार्वतीजी बढ़ने लगी त्यों-त्यों उनके अंग भी सुडौल होकर बढ़ने लगे। 4. शशिप्रभा :-चाँदनी, कौमुदी, ज्योत्स्ना। एक पिंगल गिरौ जगद्गुरुर्निर्विवेश विशदाः शशिप्रभाः। 8/24 महादेवजी ने कुबेर की राजधानी कैलास पर रहकर उजली चाँदनी का भरपूर आनन्द लूटा। पत्र जर्जर शशि प्रभालवैरेभिरुत्कचयितुं तवालकान्। 8/72 तुम चाहो तो फूलों के समान दिखाई पड़ने वाले इन चाँदनी के फूलों से ही तुम्हारे केश गूंथ दिए जायें। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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