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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 589 कस्याश्चिदाशीद्रशना तदानीमङ्गमूलार्पितसूत्रशेषा। 7/61 खिड़कियों तक पहुँचते-पहुँचते मणियों के दाने तो सब बिखर गए पर पैर के अँगूठे में बंधा हुआ डोरा ज्यों का त्यों फंसा रह गया। कान्ति 1. कान्ति :-[कम्+क्तिन्] मनोहरता, सौन्दर्य, चमक, प्रभा, दीप्ति। उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तवकान्तिमत्तया। 4/5 हे प्यारे ! आज तक विलासियों के शरीर की तुलना तुम्हारे जिस सुन्दर शरीर से की जाती थी। सा चक्रवाकङ्कितसैकतायास्त्रिस्रोतसः कान्तिमतीत्य तस्थौ। 7/15 उस समय पार्वती जी इतनी सुन्दर लग रही थीं, कि उनके रूप के आगे उजली धारा वाली उन गंगाजी की शोभा भी फीकी पड़ गई थी, जिनके तीर पर की बालू में चकवे बैठे हों। 2. चारु :-[चरति चित्ते-चर+उण] सुखद, रमणीय, सुन्दर, कान्त, मनोहर। ददर्श चक्रीकृत चारुचापं प्रहर्तुमभ्युद्यतमात्मोनिम्। 3/70 शंकरजी देखते क्या हैं कि अपने सुन्दर धनुष को खींचकर गोल किए हुए, दाहिनी आँख की कोर तक चुटकी से डोरी खींचे हुए, मुझ पर बाण चलाने ही वाला है। निनिंद रूपं हृदयेन पार्वती प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता। 5/1 वे भी भरकर अपनी सुन्दरता को कोसने लगीं, क्योंकि जो सुन्दरता अपने प्यारे को न रिझा सके, उसका होना न होना दोनों बराबर है। 3. मनोरम :-सुन्दर। मनोरमं यौवन मुद्वहन्त्या गर्भोऽभवद्भूधरराजपत्न्याः । 1/19 कुछ ही दिनों में हिमालय की वह सुन्दर और युवती पत्नी गर्भवती हो गई। 4. मनोहर :-सुन्दर, चारु। प्रतिपद्य मनोहरं वपुः पुनरप्यादिश तावदुत्थितः। 4/16 तुम अपने इस राख के शरीर को छोड़कर पहले जैसा सुन्दर शरीर धारण करके। बृहन्मणि शिला सालं गुप्तावपि मनोहरम्। 5/38 मणियों के ऊँचे-ऊँचे परकोटों में छिपे रहने पर भी वह नगर बड़ा सुन्दर लग रहा था। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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