SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव कपोल संसर्पि शिखः स तस्या मुहूर्त कर्णोत्पलतां प्रपेदे । 7/81 वह धुआँ उनके गालों के पास पहुँचकर कुछ क्षणों के लिए उनके कानों का कर्णफूल बन जाता था । 587 2. शृण्व :- कान । इत्योषधिप्रस्थ विलासिनीनां शृण्वन्कथाः श्रोत्र सुखास्त्रिनेत्र: । 7/69 औषधिप्रस्थ की स्त्रियों की ऐसी मीठी-मीठी बातें सुनते हुए शंकर जी । कर्म 1. कर्म : - [ कृ + मनिन् ] कृत्य, कार्य, कर्म । अप्य प्रसिद्धं यशसे हि पुंसामनन्यासधारणमेव कर्म | 3 / 19 संसार में ऐसा असाधारण काम करने से ही यश मिलता है, जिसे कोई दूसरा न कर सके । 2. कार्य : - [ कृ + ण्यत् ] काम, मामला, बात, कर्तव्य । मनसा कार्य संसिद्धौ त्वरादिगुणरहसा । 2/63 अपने काम के लिए वेग से दौड़ने वाले मन में । अवैमि ते सारमतः खलु त्वां कार्ये गुरुण्यात्मसमनियोक्ष्ये । 3/13 मैं तुम्हारी शक्ति भली-भाँति जानता हूँ, इसीलिए मैं तुम्हें अपने जैसा मानकर इस बड़े काम में लगाना चाहता हूँ । जितेन्द्रिये शूलिनि पुष्पचापः स्वकार्य सिद्धिं पुनराशशंस | 3/57 तब उसके मन में जितेन्द्रिय महादेवजी को वश में करने की आशा फिर हरी हो उठी । ब्रूतये नात्र वः कार्य मनास्था बाह्य वस्तुषु । 6/63 इनमें से जिससे भी आपका काम बने उसे आज्ञा दीजिए, क्योंकि धन-सम्पत्ति आदि जितनी भी बाहरी वस्तुएँ हैं, वे तो आपकी सेवा के लिए तुच्छ हैं। मेने मेनापि तत्सर्वं पत्युः कार्यमभीप्सितम् ।। 6 / 86 मैना ने भी अपने पति की हाँ में हाँ मिलाकर सब बातें मान लीं । 3. क्रिया :- [ कृ+श, रिङ् आदेशः, इयङ् ] कार्य, कर्म । For Private And Personal Use Only काष्ठागत स्नेहरसानुबिद्धं द्वन्द्वानि भावं क्रियया विवब्रुः 1 3 / 39 तब चर और अचरों की अत्यंत बढ़ी हुई सम्भोग की इच्छा उनमें दिखाई देने लगी ।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy