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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 581 स्वभाव से कोमल भी था पर साथ ही साथ सोने का बना होने से ऐसा पक्का भी था कि तपस्या से कुंभला न सके। तत्र काञ्चन शिलातलाश्रयो नेत्रगम्यभवलोक्य भास्करम्। 8/29 वहाँ पहुँचकर वे सोने की एक चट्टान पर बैठ गए। उस समय सूर्य का तेज इतना कम हो गया था, कि उसकी ओर भली-भाँति देखा जा सकता था। 3. जाम्बूनद :-[जम्बूनद्+अण्] सोना। तां प्रणामा दरस्त्रस्तजाम्बूनदवतंसकाम्। 6/1 उन्हें प्रणाम करने के लिए पार्वतीजी ज्यों ही लजाती हुई झुकी, कि उनके कानों से सोने का कुण्डल खिसक गया। 4. सुवर्ण :-वि० [सुष्ठु वर्णोऽस्य] सोना, सोने का सिक्का, सुंदर रंग का। पुरो विलग्नर्हरदृष्टिपातैः सुवर्ण सूत्रैरिव कृष्यमाणः। 7/50 मानो आगे पड़ती हुई शिवजी की चितवन की सोने की डोरियाँ उसे खींचती ले गई हों। 5. हिरण्य :- [हिरणमेव स्वार्थे यत्] सोना। उच्चैर्हिरण्यमयं शङसुमेरोर्वितथीकृतम्। 6/72 सुमेरु पर्वत की सुनहरी और ऊंची चोटियों को भी नीचा दिखा दिया। 7. हेम :- [हि+मन्] सोना। हेमतामरसताडित प्रिया तत्कराम्बु विनिमीलितेक्षणा। 8/26 वहाँ से सोने के कमल तोड़-तोड़कर उनसे महादेवजी को मारती और महादेवजी भी ऐसा पानी उछालते कि इनकी आँखें बन्द हो जाती। 8. हैम :-[हिम्+अण] सोने से बना हुआ। मुक्ता यज्ञोपवीतानि बिभ्रतो हैमवल्कलाः। 6/6 जिनके कन्धों पर मोती के यज्ञोपवीत लटक रहे थे, पीठ पर सोने के वल्कल पड़े हुए थे। कपोल 1. कपोल :-[कपि+ओलच्] गाल। तस्याः कपोले परभागलाभाद्बबन्ध चढूंषि यव प्ररोहः। 7/17 जौ के अंकुर और उनके गाल इतने सुंदर लगने लगे, कि सबकी आँखें बरबस उनकी ओर खिंची जाती थीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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