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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 579 क्षीरोदवेलेव सफेनपुजा पर्याप्त चन्द्रदेव शरस्त्रियामा। 7/26 वे शरद की उजली चाँदनी में क्षीर समुद्र की उतराते हुए फेनवाली लहर जैसे लगने लगीं। चन्द्रेव नित्यं प्रति भिन्न मौलेश्चूडामणेः किं ग्रहणं हरस्य। 7/35 उनके मुकुट पर सदा रहने वाला चन्द्रमा ही उनका चूड़ामणि बन गया था, इसलिये वे दूसरा चूड़ा मणि लेकर करते ही क्या। शीतलेन निरवापयत्क्षणं मौलिश्चन्द्रशकलेन शूलिनः। 8/18 महादेव जी के सिर पर बसे हुए चन्द्रमा पर ज्यों ही ओंठ रखतीं, त्यों ही उन्हें ऐसी ठंडक मिलती कि उनकी सब पीड़ा जाती रहती। रुद्धनिर्गमनमादिनक्षयात्पूर्व दृष्ट तनु चन्द्रिकास्मितम्। एतदुद्गिरति चन्द्रमण्डलं दिग्रहस्यामिव रात्रि नोदितम्।। 8/60 जो चन्द्रमा दिनभर दिखाई नहीं देता था, वह इस समय निकला हुआ ऐसा लगता है, मानो रात के कहने से यह चाँदनी के रूप में मुस्कराता हुआ पूर्व दिशा के सब भेद खोल रहा हो। 6. चन्द्रमा :- चन्द्रमा। रक्तभावमपहाय चन्द्रमा जात एष परिशुद्ध मण्डलः। 8/65 अब चन्द्रमा का मंडल ललाई छोड़कर धीरे-धीरे उजाला होने लगा है। 7. निशाकर :-चन्द्रमा। बहुलेऽपि गते निशाकरस्तनुतां दुःखमनङ्ग मोक्ष्यति। 4/13 तब वह अकारथ उगा हुआ चन्द्रमा शुक्ल पक्ष में भी बड़ी कठिनाई से अपना दुबलापन छोड़ पावेगा। 8. रोहिणीपति :-चन्द्रमा। अध्यथेति शयनं प्रियासखः शारदाभ्रमिव रोहिणीपतिः। 8/82 जैसे रोहिणी के पति चन्द्रमा उजाले में विश्राम करते से जान पड़ते हैं, वैसे ही उस शयनागार में भगवान् शंकर अपनी प्रियतमा के साथ लेट गए। १. शशि :-पुं० [शशोऽस्त्यस्य इनि] चन्द्रमा । शशिना सह याति कौमुदी सह मेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33 देखो ! चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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