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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव अपने सिर पर धरे हुए मणियों की किरणों से पार्वतीजी के ही चरण रंगा करेंगे। चन्द्रेव नित्यं प्रतिभिन्नमौलेश्चूड़ामणेः किं ग्रहणं हरस्य । 7/35 वह चन्द्रमा ही उनका चूड़ामणि बन गया था, इसलिए वे दूसरा चूड़ामणि लेकर करते ही क्या। 575 3. मूर्ध्न :- पुं० [ मह्यत्यस्मिन्नाहते इति मूर्धा - मुह+कनि] मस्तक । भर्तुः प्रसादं प्रतिनिन्द्य मूर्ध्ना वक्तुं मिथः प्राक्रमतैवमेनम् । 3 / 2 उसने भी सिर झुकाकर इन्द्र की कृपा स्वीकार कर ली और उनसे गुपचुप बातचीत करने लगा । मूर्ध्नि गंगाप्रपातेन धौत पादाम्भसा च वः ।। 6/57 एक तो सिर पर गंगा जी की धारा गिरने से, दूसरे आप लोगों के चरण की धावन पा लेने से । कम्पेन मूर्ध्नः शतपत्र योनिं वाचा हरिं वृत्रहण स्मितेन । 7 / 46 शिवजी ने ब्रह्मा जी की ओर सिर हिलाकर, विष्णुजी से कुशल मंगल पूछकर, इन्द्र की ओर मुस्कराकर । मूर्धान मालि क्षिति धारणोच्चमुच्चैस्तरं वक्ष्यति शैलराजः । 7/68 हे सखी, पर्वतेश्वर हिमालय बड़े भाग्यवान हैं। एक तो पृथ्वी धारण करने से उनका सिर वैसे ही ऊँचा था । वीक्षितेन परिवीक्ष्य पार्वती मूर्ध कम्पमयमुत्तरं ददौ । 8/6 बस अपनी आँखें ऊपर उठाकर और सिर घुमाकर यह जता देतीं, कि मैं आपकी सब बातें मानती हूँ । 4. मौलि : - पुं० स्त्री० [ मूलस्यादूरे भवः । मूल + सुतङ्गमादित्वाद् इञ् ] सिर । तथाहि नृत्याभिनय क्रियाच्युतं विलिप्यते मौलिभिरम्बरौकसाम् । 5/79 इसलिए तो जब वे तांडव नृत्य करने लगते हैं, उस समय उनके शरीर से झड़ी हुई भस्म को देवता लोग बड़ी श्रद्धा से अपनी माथे पर चढ़ाते हैं । करोति पादावुपगम्य मौलिना विनिद्रमन्दरारजोरुणाङ्गुली। 5/8 इन्द्र भी उनके पैरों पर मस्तक नवाया करता है और फूले हुए कल्पवृक्ष के पराग से उनके पैरों की उँगलियाँ रंगा करता है। For Private And Personal Use Only शीतलेन निरवापयत्क्षणं मौलिचन्द्रशकलेन शूलिनः । 8/18 महादेव जी के सिर पर बसे हुए चन्द्रमा पर ज्यों ही औंठ रखतीं, त्यों ही उन्हें ऐसी ठंडक मिलती कि उनकी सब पीड़ा जाती रहती ।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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