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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 476 कालिदास पर्याय कोश वितृण्वती शैलसुतापि भावमंगैः स्फुरद्बाल कुदम्ब कल्पैः। 3/68 पार्वतीजी भी फले हुए नए कदम्ब के समान पुलकित अंगों से प्रेम जतलाती हुई। प्रतिपथगतिरासी द्वेगदीर्धी कृतांगः। 3/76 वेग से सीधा शरीर किये हुए जिधर से आए थे, उधर ही लौट गए। तदंग संसर्गमाप्य कल्पते धुवं चिताभस्म रजोविशुद्धये। 5/79 उनको देखते ही पार्वती जी के शरीर में कंपकंपी छूट गई, वे पसीने-पसीने हो गईं। अद्य प्रभृत्यवनतांगि तवास्मि दासः। 5/86 हे कोमल शरीर वाली ! आज से तुम मुझे अपना दास समझो। अपि व्याप्त दिगन्तानि नांगानि प्रभवन्ति मे। 6/59 दूर-दूर तक फैले हुए अपने इन बड़े अंगों में भी मैं फूलाए नहीं समा रहा हूँ। विनयस्त शुक्लागुरु चारंग गोरोचनापत्रविभक्तमस्याः। 7/11 किसी ने उजले अगर से बनाया हुआ अंग राग उनके शरीर पर मला और फिर अत्यंत लाल गोरोचन से उनका शरीर चीता। 2. काया :-[चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि+घञ्, आदेः ककारः] शरीर, अंग। काठिन्यं स्थावरे काये भवता सर्वमर्पितम्।। 6/73 आपने अपनी सारी कठोरता अपने अचल शरीर में भर ली है। 3. तनू :-स्त्री० [तन्+ऊ] शरीर। उमातनौ गूढ तनोः स्मरस्य तच्छिंकनः पूर्वमिव प्ररोहम। 7/76 पार्वतीजी का वह लाल-लाल उँगलियों वाला हाथ ऐसा लगता था, मानो महादेवजी के डर से छिपे हुए कामदेव के अंकुर पहले-पहल निकल रहे हों। 4. देह :-[दिह+घञ्] शरीर। व्यादिश्यते भूधरतामवेक्ष्य कृष्णेन देहोद्वयनाय शेषः। 3/13 क्योंकि वे देख चुके थे कि शेषनाग जब पृथ्वी को धारण कर सकते हैं, तो मेरा बोझ भी सह लेंगे। इति देह विमुक्तये स्थितां रतिमाकाशभवा सरस्वती। 4/39 वैसे ही अचानक सुनाई पड़ने वाली आकाशवाणी ने भी, प्राण छोड़ने को उतारू रति पर, यह कृपा की वाणी बरसा दी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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