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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 68 www. kobatirth.org कुसुमरेणु 1. कण : - [ कण्+अच्] पराग, अनाज का दाना । उपचितावयवा शुचिभिः कणैरलिकदम्बकयोगमुपेयुषी । 9/44 तिलक के फूलों के गुच्छे उजले पराग से भरे बढ़ चुके थे । उन पर मंडराते हुए भौरों के कारण । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. कुसुमरेणु :- [ कुष्+उम्+रेणु] पराग । कुसुम केसर रेणुमलि व्रजाः सपवनो पवनोत्थितमन्वयुः । 9/45 उपवनों के फूलों का पराग जो वायु ने उड़ाया, तो भौरों के झुंडं भी उसके पीछे-पीछे उड़ चले । 4. पुष्परज :- [पुष्प्+अच्+रजस्] पराग । कालिदास पर्याय कोश 3. केसर : - [ के+सृ (शृ) + अच्, अलुक् स०] फूल का रेशा या तन्तु । युवतयः कुसुमं दधुराहितं तदलके दलकेसर पेशलम् 19/40 अपने प्रियतमों के हाथों से जूड़ों में खँसे हुए वे सुन्दर पंखड़ी वाले और पराग वाले फूल स्त्रियों के केशों में बड़े सुंदर लग रहे थे । 5. पुष्परेणु :- [पुष्प्+अच्+रेणु] पराग। गात्रं पुष्परजः प्राप न शाखी नैऋतेरितः । 15/20 वह वृक्ष तो उनके शरीर तक नहीं पहुँच सका केवल उसके फूलों का पराग भर उन तक पहुँच पाया। पुष्परेणूत्किरैर्वातैराधूत वनराजिभि: 1 / 38 फूलों के पराग उड़ाता हुआ और वन के वृक्षों की पाँतों को धीरे-धीरे कँपाता हुआ पवन । 6. मकरंद : - [ मकरमपि द्यति कामजनकत्वात् दो - अखण्डनेक पृषो० मुम् - तारा०] मधु, शहद, फूलों का रस । 1. केयूर भुजबंद | प्रस्थन प्रणतिभिरंगुलीषु चक्रमौलिकच्युतमकरंद रेणु गौरम् | 4/68 उस समय उन राजाओं के सिर की मालाओं से जो पराग गिर रहा था, उससे रघु के चरणों की उँगलियाँ गोरी हो गईं। केयूर :- [के बाहौ शिरसि वा याति, या +ऊर किच्च ] टाड, बाजूबंध, For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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