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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश जैसे नंदन वन के वृक्षों में परिजात ही सबसे अधिक सुंदर है, वैसे ही अकेले अज ही खिल रहे हैं। नाबुद्धकल्पदुमतां विहाय जातं तमात्मन्यसिपत्रवृक्षम्। 14/48 उन्हें क्या पता था कि इस समय वे मेरे लिए मनोरथ पूरा करने वाले कल्पवृक्ष के बदले असि पत्र के वृक्ष के समान कष्टदायक हो गए हैं, जिसके पत्ते तलवार के समान पैने होते हैं। स पुरं पुरुहूतश्री: कल्पदुमनिभध्वजाम्। 17/32 तब कल्पवृक्ष के समान ध्वजाओं वाली अयोध्या नगरी स्वर्ग के समान लगने लगी। 3. कल्पवृक्ष :-[कृप्+अच्, घञ् वा+वृक्ष:], स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग। सद्यएव सुकृतां हि पच्यते कल्पवृक्षफलधर्मिकांक्षितम्। 11/50 ठीक भी है, पुण्यवानों की अभिलाषा कल्पवृक्ष के समान तत्काल फल देने वाली होती है। काकपक्ष 1. काकपक्ष :-[कै+कन्+पक्षः] बालकों और तरुणों की कनपटियों के लंबे बाल [विशेषकर क्षत्रियों के] । सवृत्तचूलश्चलकाकपक्षकैरमात्यपुत्रैः सवयोभिरन्वितः। 3/28 मुंडन संस्कार हो जाने पर रघु ने चंचल लटों वाले तथा समान आयु वाले मंत्रियों के पुत्रों के साथ। काकपक्षधरमेत्य याचितस्ते जसां हि नवयः समीक्ष्यते। 11/1 काकपक्षधारी राम को माँगा, ठीक ही है, जो तेजस्वी होते हैं, उनके लिए यह विचार नहीं किया जाता कि वे छोटे हैं या बड़े। तौ प्रणाम चलकाकपक्षको भ्रातरावभृथाप्लुतो मुनिः। 11/31 महर्षि विश्वामित्र ने उन राम और लक्ष्मण को बड़ा आशीर्वाद दिया, जिनकी लटें प्रणाम करते समय झूल रही थीं। एव माप्त वचनात्स पौरुषं काकपक्षकधरेऽपि राघवे। 11/42 वैसे ही काक पक्षधारी राम में भी धनुष उठाने की शक्ति अवश्य होगी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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