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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org ऐ ऐरावत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह सब मेरे पूर्व जन्म के पापों का ही फल है। 5. वृजिन :- [ वृजे : इनज् कित् च] दुष्ट, पापी, पाप, पीड़ा, दुःख । न चावदद् भर्तृरवर्णमार्या निराकरिष्णोर्वृजिनादृतेऽपि । 14/57 वे इतनी साध्वी थीं कि निरपराध पत्नी को निकालने वाले अपने पति को उन्होंने कुछ भी बुरा-भला नहीं कहा। 55 1. ऐरावत :- [ इरा आप: तद्वान् इरावान् समुद्रः तस्मादुत्पन्नः अण् ] इंद्र का हाथी, श्रेष्ठ हाथी, पूर्व दिशा का दिग्गज । प्रावृषेण्यं पयोवाहं विद्युदैरावताविव । 1/36 उस पर बैठे हुए वे दोनों ऐसे जान पड़ते थे, मानो वर्षा के बादल पर ऐरावत और बिजली दोनों चढ़े चले जा रहे हों । ऐरावतास्फालन विश्लथं यः संघट्टयन्नंगदमंगदेन । 6/73 ऐरावत को बार-बार अंकुश लगाने से इन्द्र के जो भुजबंध ढीले पड़ गए थे, वे ककुत्स्थ के भुजबंध से रगड़ खाते थे । क्रममाणश्चकार द्यां नागेनैरावतौजसा । 17/32 इंद्र के समान ऐश्वर्यशाली राजा अतिथि जब ऐरावत के समान बलवान हाथी पर चढ़कर अयोध्या में घूमने निकले। 2. द्विपेन्द्र : - हाथी । आसीदनाविष्कृत दानराजिरंतर्मदावस्थ इव द्विपेन्द्रः 1 2/7 किसी मतवाले हाथी के माथे से मद की धारा न भी निकलती हो, तो भी उसको देखते ही उसके तेज का अनुमान हो जाता है। महोक्षतां वत्सतरं स्पशन्निव द्विपेन्द्र भवंकलभः श्रयन्निव । 3 / 32 जैसे गाय का बछड़ा बड़ा होकर सांड़ हो जाता है और हाथी का बच्चा बढ़कर गजराज हो जाता है। For Private And Personal Use Only सोढुं न तत्पूर्वमवर्णमीशे आलानिकं स्थाणुमिव द्विपेन्द्रः । 14/38 जैसे हाथी अपने अलान से खीझकर उसे उखाड़ने की चेष्टा करता है, वैसे ही मैं भी इस कलंक को अब नहीं सह सकता।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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