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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4A कालिदास पर्याय कोश लक्ष्मीविनोदयति येन दिगन्तलंबी सोऽपि त्वदाननरूचिं विजहाति चन्द्रः। 5/67 सौंदर्यलक्ष्मी तुम्हें चाहते रहने पर भी रुष्ट होकर तुम्हारे ही मुख के सामन सुंदर चंद्रमा के पास चली गई थी। वेलासकाशं स्फुटफेनराजिन वैरुदन्वानिव चन्द्रपादैः। 7/19 जैसे चंद्रमा की नई किरणें समुद्र की उजली भाग वाली लहरों को खींचकर दूर किनारे तक ले जाती है। समदुखसुख: सखीजनः प्रदिपच्चन्द्रनिभोऽयमात्मजः। 8/65 तुम्हारे सुख दुख की साथी ये सखियाँ खड़ी हैं, शुक्लपक्ष के चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुख वाला तुम्हारा पुत्र भी यहीं है। उवास प्रतिमा चन्द्रः प्रसन्नानामपामिव। 10/65 जैसे निर्मल जल में चन्द्रमा के अनेक प्रतिबिंब पड़ जाते हैं। यथा वायु विभावस्वोर्यथा चन्द्र समुद्रयोः। 10/82 जैसे वायु और अग्नि का तथा चन्द्रमा और समुद्र का जोड़ा कभी अलग नहीं होता। निवातस्तिमितां वेलां चन्द्रोदय इवोदधेः। 12/36 जैसे वायु के रुके रहने से शांत समुद्र का तट चंद्रमा के निकलने पर हिलोरें लेने लगता है। 5. चन्द्रमा :-[चन्द्र+मि+असुन, मा आदेश:] चाँद, चन्द्रमा। हिमनिर्मुक्तयोर्योगे चित्रा चन्द्रमसोरिव। 1/46 जैसे चैत के पूनों के दिन चित्रा नक्षत्र के साथ उजला चन्द्रमा आँखों को भला लगता है। पुपोष वृद्धि हरिदश्व दीधिते रनु प्रवेशादिव बाल चन्द्रमाः। 3/22 जैसे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा सूर्य की किरणें पाकर दिन-दिन बढ़ने लगता है। नक्षत्र तारा ग्रह संकुलापि ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रिः। 6/22 जैसे तारों, ग्रहों और नक्षत्रों से भरी रहने पर रात तभी चाँदनी रात कहलाती है जब चन्द्रमा खिला हुआ हो। समलक्ष्यत बिभ्रदा विलां मृगलेखामुषसीव चन्द्रमाः। 8/42 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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