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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश रजो विश्रामयन्राज्ञां छत्रशून्येषु मौलिषु । 4 / 85 उठी हुई धूल पीछे-पीछे चलने वाले हारे हुए राजाओं के छत्र-रहित सिर पर बैठती चलती थी । आप्त 1. आप्त :- [ आप्+क्त] संबंधी, मित्र, विश्वसनीय । निग्रहात्स्व सुराप्तानां वधाच्चधनदानुजः । 12 /52 बहन का अपमान और खरदूषण आदि अपने संबंधियों का वध रावण को इतना अपमानजनक लगा । 2. स्वजन :- [ स्वन् +ड+जन: ] बंधु, रिश्तेदार । स्वजनाश्रु किलति संततं दहति प्रेतमिति प्रचक्षते । 8/86 जब कुटुंबी बहुत रोते हैं, तब उससे प्रेतात्मा को कष्ट होता है। आपद 1. अंतराय :- [ अन्तर् + अय् +अच्] अवरोध, बाधा, रुकावट । आपाद्यते न व्ययमन्तरायैः कच्चिन्महर्षेस्त्रिविधंतपस्तत् । 5/5 जो कठिन तप करना प्रारंभ किया था, वह तप तो ठीक चल रहा है। 2. आपद : - [स्त्री० ] [ आ + पद्+क्विप्] संकट, मुसीबत। दैवीनां मानुषीणां च प्रतिहर्ता त्वमापदाम् । 1/60 दैवी विपत्तियों और मानुषी आपत्तियों को दूर करने वाले आप हैं ही। सानुबंधाः कथं नु स्युः संपदो मे निरापदः । 1/64 तो हमारी संपत्ति निर्विध्न होकर क्यों न रहे । 2. उपप्लव : - [ उप + प्लु+अप्] विपत्ति, संकट, दुख, आपदा । जीवन्पुनः शश्वदुपप्लवेभ्यः प्रजाः प्रजानाथ पितेव पासि । 2/46 पर यदि जीते रहोगे, तो पिता के सामन तुम अपनी पूरी प्रजा की रक्षा कर सकोगे। For Private And Personal Use Only कच्चिन वाय्वादिरुपप्लवे वः श्रमच्छिदामाश्रम पादपानाम् । 5/16 जिनसे पथिकों को छाया मिलती है, उन वृक्षों को आँधी पानों से कोई हानि तो नहीं पहुची है।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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