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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 37 रघुवंश तं वाहनादवनतोत्तारकायमीषद् विध्यंतमुद्धतसयः प्रतिहंतुमीषुः। 9/60 ज्यों ही उन्होंने घोड़े पर चढ़े हुए अपने शरीर को आगे झुकाकर उन सुअरों पर बाण चलाए, त्यों ही वे भी अपने कड़े बाल खड़े करके उन पर झपटे। 7. हरि :-[ह+इन्] घोड़ा। ततार विद्याः पवनाति पातिभिर्दिशो हरिद्भिहरितामिवेश्वरः। 3/30 जैसे सूर्य अपने सरपट दौड़ने वाले घोड़ों की सहायता से शीघ्र ही चारों दिशाओं को पार कर लेता है, वैसे ही उन्होंने विद्या सीख ली। नामांक रावण शरांकित केतुयष्टिमूर्ध्वं रथं हरि सहस्रयुजं विनाय। 12/103 मातलि उनसे आज्ञा लेकर अपना सहस्रों घोड़ों वाला रथ लेकर स्वर्ग में चला गया, उस रथ की ध्वजा पर अभी तक रावण के नाम खुदे हुए बाणों के चिह्न पड़े हुए थे। अश्वमेध 1. अश्वमेध :-[अंश्+क्वन्+मेधः] एक यज्ञ जिसमें घोड़े की बलि चढ़ाई जाती प्रीत्याश्व मेधावभृथाई मूर्तेः सौस्नाति को यस्यभवत्यगस्त्यः। 6/61 जब ये अश्वमेध यज्ञ करके स्नान करते हैं, तब इनसे वे महाप्रतापी अगस्त्य ऋषि आकर कुशल पूछते हैं। जिगीषोरमेधाय धर्म्यमेव बभूव तत्। 17/76 अश्वमेध के लिए जब वे दिग्विजय करने निकले, उस समय भी उन्होंने धर्म से ही काम लिया। 2. महाक्रतु :-[महा+क्रतु] महायज्ञ। तदंग मग्रंयं मधवन्महाक्रतोरमुं तुरंगं प्रतिभोक्तृमर्हति। 3/46 इसलिए हे इन्द्र ! आप मेरे पिता के अश्वमेध यज्ञ के लिए इस घोड़े को छोड़ दीजिए। ऋत्विजः स तथाऽऽनर्च दक्षिणाभिर्महाक्रतौ । 17/80 अश्वमेध के समय जिन ब्राह्मणों ने यज्ञ कराया था, उनका इतना सत्कार किया। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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