SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 471 3. चामीकर :-[चमीकर + अण] सोना। तेजोमहिम्ना पुनरावृतात्मा तद्वयाप चामीकरपिञ्जरेण। 18/40 पर उनके शरीर से जो सुवर्ण के समान तेज निकलता था, उससे वह सिंहासन भरा सा ही जान पड़ता था। 4. जाम्बूनद :-[जम्बूनद् + अण्] सोना। निर्वृत्तजाम्बूनदपट्ट शोभे न्यस्तं ललाटे तिलकं दधानः। 18/44 सोने का पट्टा बंधे हुए अपने ललाट पर वे स्वयं तिलक लगाते थे और सदा हँसमुख रहते थे। 5. सुवर्ण :-[सुष्ठुवर्णोऽस्य :-प्रा०ब०] सोना, सोने का सिक्का। ततो निषङ्गादसमग्रमुद्धृत सुवर्णपङ्खातिरञ्जिताङ्गुलिम्। 3/64 तूणीर से आधे निकाले हुए उस बाण को फिर से उसमें डाल दिया, जिसके सुनहरे पंख की चमक से रघु की उँगलियों के नख भी चमक उठे थे। 6. हिरण्य :-[हिरणमेव स्वार्थे यत्] सोना। स मृण्मये वीतहिरण्मयत्वात्पात्रे निधायार्थ्यमनर्धशीलः। 5/2 यशस्वी रघु मिट्टी का पात्र लेकर विद्वान अतिथि की पूजा करने चले क्योंकि सोने-चाँदी के पात्र तो उन्होंने सब दान ही कर डाले थे। हिरण्मयीं कोशगृहस्य मध्ये वृष्टिं शशंसुः पतितां नभस्तः। 5/29 रक्षकों ने आकर यह अचरज-भरा समाचार दिया कि कोश में बहुत देर तक सोने की वर्षा होती रही है। 7. हेम :-[हि + मनिन्] सोना। हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा। 1/10 क्योंकि सोने का खरापन या खोटापन आग में डालने पर ही जाना जाता है। तं भूपतिर्भासुर हेमराशिं लब्धं कुबेरादभियास्यमानात्। 5/30 रघु की चढ़ाई की बात कान में पड़ते ही कुबेर ने रात को ही सोने की वर्षा कर दी। तिर्यग्वि संसर्पिनखप्रभेण पादेन हैमं विलिलेख पीठम्। 6/15 पैर के नखों की तिरक्षी चमक डालते हुए पैर की उँगलियों से सोने के पाँव-पीढ़े पर कुछ लिखने लगा। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy