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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 469 तया स्त्रजा मङ्गलपुष्पमय्या विशालवक्षः सलिलम्बया सः। 6/84 जब अज के गले में वह फूलों की मंगल माला पड़ी और उनकी चौड़ी छाती पर झूल गई। कुसुमैर्ग्रथितामपार्थिवैः स्रजमातोघशिरोनिवेशिताम्। 8/34 उनकी वीणा के सिरे पर स्वर्गीय फूलों से गुथी हुई माला लटकी हुई थी। स्रगियं यदि जीवितापहा हृदये किं निहिता न हन्ति माम्। 8/46 यदि इस माला में ही प्राण हरने की शक्ति है, तो लो मैं भी इसे छाती पर रखे लेता हूँ, पर यह मुझे क्यों नहीं मार डालती है। तेऽस्य मुक्ता गुणोन्नद्धं मौलिमन्तर्गत स्रजम्। 17/23 फूल और मोतियों की मालाओं से गुंथे हुए राजा के सिर पर। चूर्णंबभ्रुललित स्रगाकुलं छिन्नमेखलमलक्तकाङ्कितम्। 19/25 उसका पलंग फैले हुए केशर के चूर्ण से सुनहरा दिखाई देता था, उस पर फूलों की मसली हुई मालाएँ और टूटी हुई तगड़ियाँ पड़ी रहती थीं और जहाँ-तहाँ महावर की छाप पड़ी रहती थी। 4. हार :-[ह + घञ्] मोतियों की माला, हार। उवाच वाग्मी दशनप्रभाभिः संवर्धितोरः सीलतारहारः। 5/52 जब उसने बोलने के लिए मुँह खोला, तब उसके दाँतों की चमक से उसके गले में पड़ा हुआ हार दमक उठा। ताम्रोदरेषु पतितं तरुपल्लवेषु निधौत हार गुलिकाविशदं हिमाम्भः। 5/70 हार के उजले मोतियों के समान निर्मल ओस के कण वृक्षों के लाल पत्तों पर गिरकर वैसे ही सुन्दर लग रहे हैं। भवति विरलभक्तिर्लान पुष्पोपहारः स्वकिरणपरिवेशोद्भेददशून्याः प्रदीपाः। 5/74 रात की सजावट के माला के फूल मुरझा कर झड़ गए हैं, उजाला हो जाने के कारण दीपक का प्रकाश भी अब अपनी लौ से बाहर नहीं जाता। कश्चिद्विवृत्तत्रिकभिन्नहारः सुहृत्सभाभाषणतत्परोऽभूत्। 6/16 कोई राजा अपने पास बैठे हुए मित्र से बातें करने लगा, जिससे उसके गले की माला पीठ पर लटक गई। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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