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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 466 कालिदास पर्याय कोश 16. विष्वक्सेन :-[विषुम् अञ्चति :-विषु + अच् + ल्किन् + सेनः] विष्णु का विशेषण। विष्वक्सेनः सवतनुमविशत्सर्वलोक प्रतिष्ठाम्। 15/103 तीनों लोकों को धारण करने वाले भगवान् विष्णु अपने विराट शरीर में लीन हो गए। 17. शांर्गिण :-[शाङ्ग + इनि + अच्] विष्णु का विशेषण। रसातलादिवोन्मग्नं शेषं स्वप्नाय शांर्गिणः। 12/70 मानो विष्णु को अपने ऊपर सुलाने के लिए स्वयं शेषनाग ही उतर आए हों। धर्मसंरक्षणार्थव प्रवृत्तिर्भुवि शाङ्गिणः। 15/4 धर्म की रक्षा के लिए ही तो भगवान विष्णु संसार में अवतार लेते हैं। कालनेमिवधात्प्रीतस्तुराषाडिव शाङ्गिणम्। 15/40 जैसे इंद्र ने कालनेमि को मारने वाले विष्णु का स्वागत किया था। 18. हरि :-[ह + इन् + अच्] विष्णु का नाम। हरिर्यथैकः पुरुषोत्तमः स्मृतो महेश्वरत्र्यम्बक एव नापरः। 3/49 देखो! जिस प्रकार पुरुषोत्तम केवल विष्णु ही हैं, त्र्यम्बक केवल शंकर ही हैं। लक्ष्मीकृतस्य हरिणस्य हरिप्रभावः प्रेक्ष्य स्थितां सहचरीं व्यवधाय देहम्। 9/57 विष्णु या इंद्र के समान शक्तिशाली राजा दशरथ ने देखा कि वे जिस हरिण को मारना चाहते थे, उसकी हरिणी बीच में आकर खड़ी हो गई। तस्मिन्नवसरे देवाः पौलस्त्योप्लुता हरिम्। 10/5 ठीक उसी समय रावण के अत्याचार से घबराकर देवता लोग, उसी प्रकार विष्णु की शरण में गए। हरिरिव युगदीधैर्दोर्भिरंशैस्तदीयैः पतिरवनिपतीनां तैश्चकाक्षे चतुर्भिः। 10/86 जैसे रथ के जुए के समान अपनी लंबी-लंबी चार भुजाओं से विष्णु भगवान् शोभा देते हैं, वैसे ही राजा दशरथ भी अपने चार सुयोग्य पुत्रों से सुशोभित हुए। रत्नाकरं वीक्ष्य मिथः स जायां रामाभिधानो हरिरित्युवाच। 13/1 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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