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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 11. सीता : - [ सि + त पृषो० दीर्घः] मिथिला के राजा जनक की पुत्री का नाम, राम की पत्नी का नाम । स सीतालक्ष्मण सखः सत्याद्गुरुमलोपयन् । 12/9 अपने पिता के वचन सत्य करने के लिए वे सीता और लक्ष्मण के साथ केवल । कदाचिदङ्के सीतायाः शिश्ये किंचिदिव श्रमात्। 12/21 एक बार वे थके हुए सीताजी की गोद में सिर रखे। सा सीता संनिधावेव तं वव्रे कथितान्वया । 12 / 33 439 पहले तो उसने अपने कुल का परिचय दिया और फिर सीता जी के सामने ही कहने लगी । निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे । 12/44 इन्हें तो हम अकेले ही अपने धनुष से जीत लेंगे, यह सोचकर उन्होंने सीता की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंप दिया। जहार सीतां पक्षीन्द्रप्रयासक्षणविघ्नितः । 12 / 53 सीताजी को चुरा कर लंका ले गया, मार्ग में गृद्धराज जटायु उससे लड़ा भी पर वह कुछ न कर सका । तौ सीतान्वेषिणौ गृध्रं लून पक्षमपश्यताम् । 12 / 54 राम और लक्ष्मण अब सीता को ढूँढ़ने लगे, उन्होंने मार्ग में पंख कटे हुए जटायु को देखा। निर्वाप्य प्रियसंदेशैः सीतामक्षवधोद्धतः । 12/63 पहले तो उन्होंने रामजी का प्यार भरा संदेश सुनाकर सीताजी को ढाढ़स बँधाया । सीतां मायेति शंसन्ती त्रिजटा समजीवयत् । 12 / 74 पर जब त्रिजटा ने सीता जी को समझाया कि यह सब राक्षसी माया है, तब सीताजी की जान में जान आई। तस्य स्फुरति पौलस्त्यः सीता संगमशंसिनि । 12/90 जो फड़कती हुई शुभ सूचना दे रही थी, कि अब सीताजी के प्राप्त होने में देर नहीं है, उस भुजा में रावण ने । क्लेशावहा भर्तुरलक्षणाहं सीतेति नाम स्वमुदीरयन्ती । 14/5 "मैं ही पति को कष्ट देने वाली कुलक्षणा सीता हूँ" - यह कहते हुए । सीतास्वहस्तोपहृता यपूजान् रक्षः कपीन्द्रान्विससर्ज रामः । 14/19 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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