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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 425 रघुवंश गुरोरपीदं धनमाहिताग्नेर्नश्यत्पुरस्तादनुपेक्षणीयम्। 2/44 पर साथ ही मैं अग्निहोत्री गुरु के इस गौ रूपी धन को भी अपनी आँखों के आगे नष्ट होते नहीं देख सकता। तमर्चयित्वा विधिवद्विधिज्ञ स्तपोधनं मातधनाग्रयायी। 5/3 तप के धनी कौत्स कुशा के आसन पर बैठ हुए थे, शास्त्र के जानने वाले सम्माननीय रघु ने बड़ी विधि से उनकी पूजा की। 3. वसु :-[वस् + उन्] दौलत, धन। वसु तस्य विभोर्न केवलं गुणवत्तापि परप्रयोजना। 8/31 अज ने केवल अपने धन से ही दूसरों को लाभ नहीं पहुँचाया, वरन् अपने गुणों से भी लोगों का उपकार किया। स तावदभिषेकान्ते स्नातकेभ्यो ददौ वसु। 17/17 अभिषेक के पश्चात् उन्होंने यज्ञ कराने वाले ब्राह्मणों को इतना धन दिया। 4. वित्त :-[विद् लाभे + क्त] धन, दौलत, जायदाद, संपत्ति। वित्तस्य विद्या परिसंख्यया मे कोटिश्चतस्रो दश चाहरेति। 5/21 मैंने तुम्हें चौदह विद्याएँ पढ़ाई हैं, इसलिए मुझे चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ ला कर दो। 5. संपद :-(स्त्री०) [सम् + पद् + क्विप्] धन, दौलत। संपद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयम्। 1/26 इस प्रकार दोनों एक दूसरे को धन का लेन-देन करके दोनों लोकों का पालन करते थे। प्रियानुरागस्य मनः समुन्नतेर्भुजार्जितानां च दिगन्त संपदाम्। 3/10 राजा दिलीप जितना रानी को प्यार करते थे, जितनी उन्हें प्रसन्नता थी और जितना बड़ा धन संपन्न उनका राज्य था। ग्रहैस्ततः पञ्चभिरुच्च संश्रयैरसूर्यगैः सूचितभाग्यसंपदम्। 3/13 जिस प्रकार राजा अपनी तन साधनाओं वाली शक्ति से अचल संपत्ति पा लेता है, वे पाँच शुभ ग्रह सूचना दे रहे थे जो उस समय उच्च स्थान पर थे और साथ में सूर्य के न होने से फल देने में समर्थ थे। पितुः प्रयत्नात्स समग्रसंपदः शुभैः शरीरावयैर्दिने दिने। 3/22 वैसे ही बालक रघु के अंग संपत्तिशाली पिता की देखरेख में दिन-दिन बढ़ने लगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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