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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 387 2. आखण्डल :-[आखण्डयति भेदयति पर्वतान् :-आ + खण्ड् + डलच्, डस्यनेत्वम् तारा०] इन्द्र। तमीशः कामरूपाणामत्याखण्डल विक्रमम्। 4/83 तब असम के राजा ने इंद्र से भी अधिक पराक्रमी रघु को। 3. इन्द्र :-[इन्द्र + रन्, इन्दतीति इन्द्रः, इदि ऐश्वर्ये-मल्लि०] देवों का स्वामी, वर्षा का देवता, इन्द्र। वार्षिकं संजहारेन्द्रो धनुर्जेत्रं रघुर्दधौ। 4/16 इन्द्र ने जब अपना वर्षा ऋतु का इंद्र धनुष हटाया, तब रघु ने अपना विजयी धनुष हाथ में उठा लिया। नालं विकर्तुं जनितेन्द्रशङ्कं सुराङ्गनाविभ्रमचेष्टितानि। 13/42 इनके तप से डरकर इन्द्र ने इनके पास भी अप्सराओं को भेजा। स कुलोचितमिन्द्रस्य सहायकमुपेयिवान्। 17/5 अपने कुल की चलन के अनुसार कुश भी एक बार युद्ध में इन्द्र की सहायता करने गए। इन्द्रावृष्टिर्नियमितगदोद्रेकवृत्तिर्यमोऽभूद्यादोनाथः शिवजलपथः कर्मणे नौचराणाम्। 17/81 इन्द्र ने उनके साम्राज्य पर वर्षा की, यमराज ने रोगों का बढ़ना रोका, वरुण ने नाव चलाने वालों के लिए जल के मार्ग खोल दिए। 4. गोत्रभिद :-[गो + त्रः + भिद्] इन्द्र का विशेषण। रघोरवष्टम्भमयेन पत्रिणा हदिक्षतो गोत्रभिदायमर्षणः। 3/53 रघु ने खंभे के समान दृढ़ एक बाण इंद्र की छाती में मारा। उपेयुषः स्वामपि मूर्तिमग्यामर्धासनं गोत्रभिदोऽधितष्ठौ। 6/73 युद्ध समाप्त हो जाने पर जब इन्द्र अपना रूप धारण करके स्वर्ग जाने लगे, तब उनके साथ ककुत्स्थ भी बैठे हुए थे। पक्षच्छिदा गोत्रभिदात्त गन्धाः शरण्यमेनं शतशो महीध्राः। 13/7 वैसे ही सैकड़ों पहाड़ों ने भी इसकी शरण ली थी, जिनके पंख इन्द्र ने काट दिए थे और जिनका अभिमान इन्द्र ने चूर कर दिया था। 5. तुराषाह :-[तुर् + सह् + णिच् + क्विप्] इन्द्र। कालनेमिवधात्प्रीतस्तुराषाडिव शाङ्गिणम्। 15/40 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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