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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 380 कालिदास पर्याय कोश ओर खिले हुए कमल दिखाई दे रहे हों और दूसरी ओर मुंदे कुमुदों का जंगल खड़ा हो। हुत हुताशन दीप्ति वनश्रियः प्रतिनिधिः कनकाभरणस्य यत्। 9/40 हवन की अग्नि के समान चमकते हुए कनैर के फूल वनलक्ष्मी के कानों के कर्णफूल जैसे जान पड़ते थे। मृगवनोपगमक्षमवेषभृद्विपुल कण्ठ निषक्त शरासनः। 9/50 जब अहेरी का वेश बनाकर, अपने ऊँचे कंधे पर धनुष टाँगे, तेजस्वी राजा दशरथ घोड़े पर चढ़कर जंगल में चले। स्थिरतुरंगभूमि निपानवन्मृगवयोग वयोपचितं वनम्। 9/53 तब वे उस जंगल में पहुंचे, जहाँ की पृथ्वी घोड़ों के लिए पक्की थी, वहाँ बहुत से ताल थे, जिनके चारों ओर बहुत से हरिण, पक्षी और बनैली गाएँ घूमा करती थीं। श्यामीचकार वनमाकुल दृष्टि पातैर्वातेरितोत्पलदलप्रकरैरिवार्दैः। 9/56 उनकी घबराई हुई आँखों से भरा हुआ वह सारा जंगल ऐसा लगने लगा, मानो वायु ने नीले कमलों की पंखड़ियाँ लाकर वहाँ बिखेर दी हों। आचचाम सतुषार शीकरो भिन्नपल्लवपुटो वनानिलः। 9/68 उसे वन के उस वायु ने सुखा दिया, जो जल के कणों से शीतल होकर पत्तों और कलियों को गिराता चल रहा था। चित्रकूटवनस्थं च कथितस्वर्गतिर्गुरोः। 12/15 उन दिनों राम चित्रकूट वन में रहते थे, वहाँ जाकर भरत जी ने उन्हें दशरथ जी की मृत्यु का समाचार सुनाया। प्राप्ता दवोल्काहतशेषबर्हाः क्रीडामयूरा वनवर्हिणत्वम्। 16/14 अब वे उन जंगली मोरों के समान लगते हैं, जिनकी पूँछे वन की आग से जल गई हों। चित्रद्विपा: पद्मवनावतीर्णाः करेणुभिर्दत्तमृणालभङ्गाः। 16/16 जिन चित्रों में ऐसा दिखाया गया था कि हाथी कमल के जंगल में उतर रहे हैं और हाथनियाँ उन्हें सैंड से कमल की डंठल तोड़कर दे रही हैं। वनेषु सायंतनमल्लिकानां विजृम्भणोद्गन्धिषु कुड्मलेषु। 16/47 वनों में चमेली खिल गई और उसकी सुगंध चारों ओर फैलने लगी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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