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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 26 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश प्रवृद्धौ हीयते चन्द्रः समुद्रोऽपि तथा विध: 117/71 पूरा बढ़ चुकने पर चंद्रमा घटने लगता है और समुद्र की भी यही दशा होती है। 14. सरित्पति :- [ सृ + इति + पतिः ] समुद्र । कावेरीं सरितां पत्युः शंकनीया मिवाकरोत्। 4 / 45 इस प्रकार कावेरी नदी की ऐसी दुर्गति कर दी गई कि जब वह अपने पति समुद्र के पास जाय तो उसे उसके चरित्र में संदेह होने लगे । 15. सागर :- [ सगरेण निर्वृत्तः +अण्] समुद्र, उदधि, सागर । तितीर्षुर्दुस्तरं मोहादुडुपे नास्मि सागरम् । 1/2 तिनकों से बनी छोटी नाव लेकर अपार समुद्र को पार करने की बात सोच रहा हूँ। स वेलावप्रवलयां परिखीकृतसागराम् । 1/30 जिसका परकोटा समुद्र का तट था और जिसकी खाई का काम स्वयं समुद्र करता था । महीधरं मार्गवशादुपेतं स्त्रोतोवहा सागरगामिनीव । 6 / 52 राजा सुषेण को छोड़कर उसी प्रकार आगे बढ़ गए, जैसे समुद्र की ओर बढ़ती हुई नदी बीच में पड़ते हुए पहाड़ को छोड़ जाती है । तमलभन्त पतिं पतिदेवताः शिखरिणामिव सागरपगाः । 9/17 जैसे पर्वत से निकलने वाली नदियाँ समुद्र को पा लेती हैं, वैसे ही उन्हें पति के रूप में पा लिया। पावकस्य महिमा स गव्यते कक्षवज्ज्वलति सागरेऽपियः । 11/1 अग्नि का प्रताप तभी सराहनीय है जब वह समुद्र में भी वैसे ही भड़ककर जले जैसे सूखी घास के ढेर में I भस्मसात्कृतवतः पितृद्विषः पात्रसाच्च वसुधांससागराम् । 11/8 पिता के शत्रुओं का नाश करने वाले और सागर तक फैली हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान देने वाले मुझे । For Private And Personal Use Only पौत्रः कुशस्यापि कुशेशयाक्षः ससागरां सागर धीरचेताः । 18/4 समुद्र के समान गंभीर चित्त वाले निषध ने भी सागर तक फैली पृथ्वी का भोग किया । 16. सिंधुराज : - [ स्यन्द + उद् संप्रसारणं दस्य धः ] समुद्र, सागरराज ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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