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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 358 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश क्योंकि इक्ष्वाकु वंश के राजाओं में यही परंपरा चली आई है कि । जातः कुले तस्य किलोरुकीर्तिः कुलप्रदीपो नृपतिर्दिलीपः । 6/74 उन्हीं प्रतापी ककुत्स्थ के वंश में यशस्वी राजा दिलीप ने जन्म लिया। कुलेन कान्त्या वयसा नवेन गुणैश्च तैस्तैर्विनय प्रधानैः । 6/79 इनका कुल, रूप, यौवन और नम्रता ये सब गुण तुम्हारे ही जैसे हैं। तदुपहितकुटुम्बः शान्तिमार्गोत्सुकोऽभून्न हि सति कुलधुर्ये सूर्यवंश्या गृहाय । 7/71 फिर उन्हें कुटुम्ब का भार सौंपकर मोक्ष की साधना में लग गए, क्योंकि सूर्यवंशी राजाओं का यह नियम है कि जब पुत्र कुल का भार संभालने योग्य हो जाता है, तब वे घर में नहीं रहते । प्रशमस्थितपूर्वपार्थिवं कुलमभ्युद्यतनूतनेश्वरमू । 8/15 उस समय सूर्य वंश उस आकाश के समान लग रहा था । अधिगतं विधिवद्यदपालयत्प्रकृतिमण्डलमात्कुलो चितम् । 9/2 उन्होंने अपने पुरुखों से पाई हुई राजधानी और मण्डलों का वंश की रीति से अच्छे ढंग से पालन किया। तमपहाय ककुत्स्थ कुलोद्भवं पुरूषमात्मभवं च पतिव्रता । 9/16 फिर भगवान विष्णु और ककुत्स्थ वंश के दशरथ को छोड़कर और दूसरा राजा ही कौन सा था, जिसके यहाँ पतिव्रता लक्ष्मी रहती । परस्पराविरुद्धास्ते तद्रघोरनघं कुलम् । 10/80 परस्पर प्रेम से उन चारों कुमारों ने पवित्र रघु कुल को उजागर कर दिया। अप्यसुप्रणयिनां रघोः कुले न व्यहन्यत कदाचिदर्शिता । 11/2 क्योंकि रघुकुल की सदा से यह रीति रही है, कि यदि कोई प्राण भी माँगे, तो उसे विमुख नहीं लौटाते । भृत्यभावि दुहितुः परिग्रहाद्दिश्यतां कुलमिदं नमेरिति । 11 /49 मेरी पुत्री सीता को स्वीकार करके इस निमि-कुल पर वैसी ही कृपा कीजिए, जैसी आप अपने सेवकों पर करते हैं। मां लोकवादश्रवणादहासीः श्रुतस्य किं तत्सदृशं कुलस्य । 14/61 इस समय अपजस के डर से जो आपने मुझे छोड़ दिया है, वह क्या उस प्रसिद्ध कुल को शोभा देता है, जिसमें आपने जन्म लिया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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