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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 342 कालिदास पर्याय कोश अन्यदा जगति राम इत्ययं शब्द उच्चरित एव मामगात्। 11/73 पहले संसार में राम कहने से लोग मुझे ही समझते थे पर। तस्मिन्गते विजयिनं परिभ्य रामं स्नेहादमन्यत पिता पुनरेव जातम्। 11/92 उनके चले जाने पर विजयी राम को दशरथ जी ने गले से लगा लिया और वे स्नेह में भरकर यह समझने लगे कि राम का दूसरा जन्म हुआ है। तं कर्णमूलमागत्य रामे श्रीय॑स्यतामिति। 12/2 राजा के कान में आकर यह कह रहा हो कि अब राम को राज्य सौंप ही देना चाहिए। सा पौरान्पौरकान्तस्य रामस्याभ्युदयश्रुतिः। 12/3 वैसे ही नगरवासियों के प्यारे राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर अयोध्या के लोग फूले नहीं समाए। रामोऽपि सह वैदेह्या वने वन्येन वर्तयन्। 12/20 राम भी सीता के साथ कन्द-मूल फल खाते हुए वह व्रत करने लगे। तस्मिन्नास्थदिषीकास्त्रं रामो रामावबोधितः। 12/23 झट सीताजी ने राम को जगाया, तत्काल राम ने उस पर सींक का बाण छोड़ा। रामस्त्वासन्नदेशत्वाद्भरतागमनं पुनः। 12/24 राम ने इस डर से वह स्थान छोड़ दिया कि ऐसा न हो कि भरत फिर यहाँ पहुँच जायें। पञ्चवट्यां ततो रामः शासनात्कुम्भजन्मनः। 12/31 जैसे अगस्त्यजी की आज्ञा से विंध्याचल, उसी प्रकार राम भी मर्यादापूर्वक पंचवटी में रहने लगे। अतिष्ठन्मार्गमावृत्य रामस्येन्दोरिव ग्रहः। 12/28 जैसे चंद्रमा का मार्ग राहु रोक लेता है, उसी प्रकार वह राम का मार्ग रोककर खड़ा हो गया। रामोपक्रममाचरव्यौ रक्षः परिभवं नवम्। 12/42 आज पहली बार राम ने इस प्रकार राक्षसों का अपमान किया है। रामाभियायिनां तेषां तदेवाभूदमंगलम्। 12/43 राम से लड़ने के लिए निकले, उन लोगों ने पहले ही अपना सगुन बिगाड़ दिया। तस्मिनरामशरोत्कृत्ते बले महति रक्षसाम्। 12/49 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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