SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 336 कालिदास पर्याय कोश राजा ने रात की वह अचरज भरी घटना प्रातः काल सभा में ब्राह्मणों से कही। रात्रिंदिवविभागेषु यदादिष्ट महीक्षिताम्। 17/49 शास्त्रों ने राजाओं के लिए दिन और रात के जो कर्तव्य निर्धारित किए हैं। आरुरोह कुमुदाकरोपमां रात्रिजागरपरो दिवाशयः। 19/34 अत: वह कुमुदों के समान रात भर जागता रहता और दिन भर सोता रहता। तस्य सर्वसुरतान्तर क्षमाः साक्षितां शिशिररात्रयो ययुः। 19/42 सब प्रकार की संभोग-क्रीडा करने योग्य हेमंत ऋतु की बड़ी-बड़ी रातों में विहार करता था, जहाँ उसके साक्षी केवल दीपक थे। 8. वसति :-[वस् + अत वा ङीप्] रात, रात्रि। तस्य मार्गवशादेका बभूव वसतिर्यतः। 15/11 मार्ग में जाते हुए उन्होंने पहली रात तो। 9. विभावरी :-[वि + भा + वनिप् + ङीप्, र आदेशः] रात शरत्प्रसन्नोतिर्भिवि भावर्य इव ध्रुवम्। 17/35 जैसे शरद् ऋतु की निर्मल रातों के तारे ध्रुव के चारों ओर घूमते हैं। 10. शर्वरी :-[ + वनिप्, ङीप्, वनोर च] रात। तनु प्रकाशेन विचेयतारका प्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी। 3/2 वे पौ फटते समय की उस रात जैसी लगने लगीं, जब थोड़े से तारे बचे रह जाते हैं और चंद्रमा भी पीला पड़ जाता है। शशिनं पुनरेति शर्वरी दयिता द्वन्द्वचरं पतत्त्रिणम्। 8/56 देखो चंद्रमा को रात्रि फिर मिल जाती है, चकवे को चकवी भी प्रातः ही मिल जाती है। अथ पथि गमयित्वा क्लृप्तरम्योपकार्ये कतिचिद्वनिपालः शर्वरीशर्वकल्पः। 11/93 तब शिव के समान राजा दशरथ ने कुछ रातें तो उस मार्ग में बिताईं, जहाँ उनके लिए सुन्दर डेरे तने हुए थे। 1. त्रिभुवनगुरु :-[त्रि + भुवनम् + गुरु] राम, विष्णु के विशेषण। इत्थं नागस्त्रिभुवनगुरोरौरसं मैथिलेयं लब्ध्वा बन्धुं तमपि च कुश: पंचमं तक्षकस्य। 16/88 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy