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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 322 कालिदास पर्याय कोश अथ तस्य विवाह कौतुकं ललितं विभ्रत एव पार्थिवः। 8/1 अभी अज ने विवाह का सुन्दर मंगल-सूत्र उतारा भी नहीं था, कि राजा रघु ने अज के हाथों में। प्रशमस्थितपूर्वपार्थिवं कुलमभ्युद्यततनूतनेश्वरम्। 8/15 एक ओर राजा रघु संन्यास लेकर शान्ति का जीवन बिता रहे थे और दूसरी ओर ऐश्वर्यशाली अज राजा बनकर गद्दी पर बैठे थे। यति पार्थिव लिङ्ग धारिणौ ददृशाते रघुराघवौ जनैः। 8/16 संन्यासी बने हुए रघु और राजा बने हुए अज को देखकर लोगों ने यह समझ लिया कि। ऋषिदेवगण स्वधा भुजां श्रुतयागप्रसवैः स पार्थिवः। 8/30 इस प्रकार वेदों का अध्ययन करके ऋषियों के ऋण से, यज्ञ करके देवताओं के ऋण से और पुत्र उत्पन्न करके पितरों के ऋण से मुक्त होकर राजा अज वैसे ही शोभित हुए। कुसुमैर्ग्रथितामपार्थिवैः स्रजमातोद्य शिरोनिवेशिताम्। 8/34 उनकी वीणा के सिरे पर स्वर्गीय फूलों से गुथी हुई माला लटकी हुई थी। क्षितिरफलवत्यजनन्दने शमरतेऽमरतेजसि पार्थिवे। 9/4 अज पुत्र राजा दशरथ देवताओं के समान तेजस्वी थे और उनका मन भी सब प्रकार से शांत था। ताभ्यस्तथाविधान्स्वप्नाञ्छ्रुत्वा प्रीतो हि पार्थिवः। 10/64 जब रानियों ने अपने ये स्वप्न राजा को सुनाए तब वे बड़े प्रसन्न हुए। यावदादिशति पार्थिवस्तयोर्निर्गमाय पुरमार्गसंस्क्रियाम्। 11/3 अभी राजा दशरथ उनकी विदाई के लिए सड़क सजाने की आज्ञा अपने सेवकों को दे ही रहे थे कि। आलसूनुरवलोक्य भार्गवं स्वां दशां च विषसाद पार्थिवः। 11/67 जब परशुराम को देखा तब राजा दशरथ को अपनी दशा देखकर बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पुत्र अभी बच्चे ही थे। मैथिलस्य धनुरन्यपार्थिवैस्त्वं किलानमितपूर्वमक्षणोः। 11/72 जनक जी के जिस धनुष को कोई राजा झुका भी नहीं सका, उसी को तूने तोड़ दिया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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