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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 297 रघुवंश 7. मखद्विष :-[मख् संज्ञायां घ + द्विष्] पिशाच, राक्षस। तत्र यावधिपती मखद्विषां तौ शरव्यमकरोत्स नेतरान्। 11/27 राम ने सबको छोड़कर उन्हीं दो राक्षसों को बाण मारे, जो उस सेना के सेनानायक थे और जो यज्ञ से घृणा करते थे। 8. यातुधान :-[या + तुन् + धान] भूतप्रेत, पिशाच, राक्षस। उदायुधानापततस्तान्दृप्तान्प्रेक्ष्य राघवः। 12/45 राम अकेले थे और राक्षस सहस्रों थे, पर वहाँ जितने राक्षस थे, उन्हें उतने राम दिखाई पड़ रहे थे। 9. रक्षस् :-(नपुं०) [रक्ष्यते हविरस्मात्, रक्ष् + असुन्] भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, राक्षस। जाने वो रक्षसाक्रतान्तावनु भाव पराक्रमौ। 10/38 वैसे ही आपके तेज और बल को राक्षस (रावण) दबा बैठा है। स्थापितो दशमो मूर्धा लभ्यांश इव रक्षसा। 10/41 अब जान पड़ता है कि उस राक्षस ने अपना दसवाँ सिर मेरे चक्र से कटने के लिए रख छोड़ा है। रक्षोविप्रकृतावास्तामपविद्धशुचाविव। 10/74 राक्षस (रावण) से पीड़ा पाया हुआ सूर्य भी निर्मल हो गया, मानो उसका शोक दूर हो गया हो। अप्रविष्टविषयस्य रक्षसां द्वारतामगमदन्त कस्य तत्। 11/18 मानो राक्षसों के उस देश में यमराज के प्रवेश करने के लिए द्वार खोल दिया हो, जहाँ अभी तक वह जा नहीं पाया था। रक्षसां बलम पश्यदम्बरे गृध्रपक्षपवनेरितध्वजम्। 11/26 आकाश की ओर देखा कि गिद्ध के पंखों के समान हिलती हुई ध्वजा वाली राक्षसों की सेना डटी खड़ी है। राघवास्त्रविदीर्णानां रावणं प्रति रक्षसाम्। 12/51 राम के अस्त्र से मारे हुए उन राक्षसों का मृत्यु का समाचार रावण तक पहुँचाने के लिए। रक्षसा मृगरूपेण वंचयित्वा स राघवौ। 12/53 राक्षस मारीच को माया मृग बनाया और राम-लक्ष्मण को धोखा देकर। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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