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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 293 कोमल हृदय वाले यशस्वी राजा दिलीप ने आश्रम के द्वार पर से ही रानी सुदक्षिणा को लौटा दिया और अपने आप उस नन्दिनी की रक्षा करने लगे। शुश्राव कुञ्जेषु यशः स्वमुच्चैरुद्नीयमानं वनदेवताभिः। 2/12 राजा दिलीप सुन रहे थे कि वनदेवता वन की कुंजों में ऊँचे स्वर से उनका यश गा रहे हैं। शस्त्रेण रक्ष्यं यदशक्य रक्षं न तद्यशः शस्त्र भृतां क्षिणोति। 2/40 जब किसी वस्तु की रक्षा शस्त्र से हो ही न सके तो इसमें शस्त्र धारण करने वाले का क्या दोष, इससे उसका यश तो घटता नहीं है। किमप्यहिंस्यस्तव चेन्मतोऽहं यशः शरीरे भव मे दयालुः। 2/57 यदि तुम किसी कारण से मेरे ऊपर दया करना चाहते हो, तो मेरे यश की रक्षा करो। पपौ वशिष्ठेन कृताभ्यनुज्ञः शुभ्रं यशो मूर्तिमिवातितष्णः। 2/69 राजा दिलीप ने वशिष्ठ की आज्ञा से नंदिनी के दूध को ऐसे पी लिया, मानो उन्हें बड़ी प्यास लगी हुई हो। उनको जान पड़ता था कि स्वयं उजला यश ही दूध बनकर चला आया हो। यदात्थ राजान्यकुमार तत्तथा यशस्तु रक्ष्यं परतो यशो धनैः। 3/48 हे राजकुमार! तुम जो कहते हो यह सब ठीक है, पर हम यशस्वियों का यह भी कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करें उनसे अपने यश की रक्षा करें। आकुमारकथोद्धा शालिगोप्यो जगुर्यशः। 4/20 प्रजापालक राजा रघु की बचपन से तब तक की गुणकथाओं के गीत बना-बनाकर गाती थीं। नारिकेलासवं योधाः शात्रवं च पपुर्यशः। 4/42 वहाँ नारियल की मदिरा के साथ-साथ, मानो शत्रुओं का यश भी पी गए। ते निपत्य ददुस्तस्मै यशः स्वमिव संचितम्। 4/50 वे सब उन्होंने रघु को ऐसे सौंप दिए, मानो अपना बटोरा हुआ यश ही उन्हें दे डाला हो। विभूतयस्तदीयानां पर्यस्ता यशसामिव। 4/19 यह जान पड़ता था कि रघु की कीर्ति ही इतने रूप बनाकर फैली हुई है। तत्राक्षोभ्यं यशोराशिं निवेश्यावरुरोह सः। 4/80 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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