SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 278 कालिदास पर्याय कोश ज्याबन्ध निष्पन्दभुजेन यस्य विनिः श्वसद्वक्त्र परम्परेण। 6/40 उसकी भुजाएँ इस प्रकार धनुष की डोरी से कसकर बाँध दी थीं कि वह बेचारा दिनरात मुँह से साँसे भरता रहता था। शिक्षाविशेष लघुहस्ततया निमेषात्तूणीचकार शरपूरित वक्त्ररन्ध्रान्।9/63 राजा दशरथ ने इतनी शीघ्रता से उन पर बाण चलाए कि उन सिंहों के खुले मुँह. उनके बाणों के तूणीर बन गए। अस्याच्छम्भः प्रलयवृद्धं मुहूर्त वक्त्राभरणं बभूव। 13/8 उस समय प्रलय से बढ़ा हुआ इसका जल क्षण भर के लिए मुँह का आभूषण चूंघट बन गया था। यो नड्वलानीव गजः परेषां बलान्य मृदानलिना भवक्त्रः। 18/5 उस कमल के समान सुंदर मुख वाले राजा ने शत्रुओं के बल को वैसे ही तोड़ डाला, जैसे हाथी नरकटके गढ़े को तोड़ डालता है। 4. वदन :-[वद् + ल्युट्] चेहरा, मुख। सुवदनावदनासवसंभृतस्तदनुवादिगुणः कुसुमोद्गमः। 9/30 सुन्दरी स्त्रियों के मुख की मदिरा के कुल्ले से फूल उठे थे और जिनमें उन्हीं स्त्रियों के गुण भी भरे थे। एताः करोत्पीडितवारिधारा दत्सिखीभिर्वदनेषु सिक्ताः। 16/66 जब इनकी सखियाँ इनके मुँह पर पानी डालती हैं और ये अहंकार से उन पर पानी उछालती हैं। प्रेमदत्तवदनानिलः पिबन्नत्यजीवदमरालकेश्वरो। 19/15 तब राजा प्रेमपूर्वक फूंक मार-मारकर उनके मुख चूमने लगता था व अपने को इन्द्र और कुबेर से बढ़कर सुखी और भाग्यवान समझता था। मृग 1. मृग :-[मृग् + क] हरिण, बारहसिंगा। मृगद्वन्द्वेषु पश्यन्तौ स्यन्दनाबद्ध दृष्टिषु। 1/40 हरिणों के जोड़े उनकी ओर एकटक देख रहे हैं। अपत्यैरिव नीवारभागधेयो चितैर्मृगैः। 1/50 बहत से मग खड़े थे, उन्हें भी तिन्नी के दाने खाने का अभ्यास ऋषियों के बच्चों के समान ही पड़ गया था। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy