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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 274 कालिदास पर्याय कोश आससाद मिथिलां स वेष्टयन्पीडितो पवनपादपां बलैः। 11/52 वे इस ठाठ-बाट से मिथला पहुँचे, मानो उसे घेरते हुए आए हों। बाहर मिथिला के उपवन को तो उनकी सेना ने रौंद ही डाला। 2. विदेह नगरी :-मिथिला। तौ विदेहनगरी निवासिनां गां गताविव दिवः पुनर्वसू। 11/36 वे दोनों राजकुमार जनकपुर के निवासियों को ऐसे सुन्दर लग रहे थे, मानो दो पुनर्वसु नक्षत्र ही पृथ्वी पर उतर आए हों। मीन 1. मत्स्य :-[मद् + स्यन्] मछली। मत्स्यध्वजा वायुवशाद्विदीर्णैमुखैः प्रवृद्धध्वजिनीरजांसि। 7/40 वायु के कारण सेना की मछली के आकार वाली झंडियों के मुँह खुल गए थे, उनमें जब धूल घुस रही थी, तब वे ऐसी जान पड़ती थीं। 2. मीन :-मछली। क्षणमात्रमृषिस्तथौ सुप्तमीन इव हृदः। 1/73 वशिष्ठ जी क्षण मात्र के लिए उस ताल के समान स्थिर और निश्चल हो गए, जिसकी सब मछलियाँ सो गई हों। परिप्लवाः स्रोतसि निम्नगायाः शैवाल लोलां श्छलयन्ति मीनात्। 16/61 इनको देखकर मछलियों को सेवार का भ्रम हो रहा है और वे इन पर मुँह मारने को झपट रही हैं। मुख 1. आनन :-[आ + अन् + ल्युट्] मुँह, चेहरा । सारसैः कल निर्हादैः क्वचिदुन्न मिताननौ। 1/41 कभी जब वे मुंह उठाकर ऊपर देखते, तो आकाश में उड़ते हुए और मीठे बोलने वाले बगुले भी उन्हें दिखाई पड़ जाते। तदाननं मृत्सुरभि क्षितीश्वरो रहस्युपाघ्राय न तृप्तिमाययौ। 3/3 वैसे ही मिट्टी खाने से रानी का जो मुँह सोंधा हो गया था, उसे एकांत में बार-बार सूंघकर भी राजा दिलीप अघाते नहीं थे। निवातपद्मस्तिमितेन चक्षुषा नृपस्य कान्तं पिवत: सुताननम्। 3/17 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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