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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 272 कालिदास पर्याय कोश सोपान मार्गेषु च येषु रामा निक्षप्तवत्यश्चरणान्सरागान्। 16/15 पहले जिन सीढ़ियों पर सुन्दरियाँ अपने महावर लगे लाल पैर रखती चलती थीं। 5. वर्त्म :-[वृत् + मनिन्] रास्ता, सड़क, पथ, मार्ग। आसमुद्रक्षितीशानामानाकरथ वर्त्मनाम्। 1/5 जिनका राज्य समुद्र के ओर-छोर तक फैला था, जिनके रथ पृथ्वी से सीधे स्वर्ग तक जाया-आया करते थे। परस्पराक्षिसादृश्यमदूरोज्झितवर्त्मसु। 2/40 हरिणों के जोड़े मार्ग से कुछ हटकर रथ की ओर एकटक देख रहे हैं। पुरस्कृता वर्मनि पार्थिवेन प्रत्युद्गता पार्थिव धर्म पल्या। 2/20 आश्रम के मार्ग में गौ के पीछे राजा दिलीप थे और अगवानी के लिए रानी सुदक्षिणा खड़ी थीं। पारसी कांस्ततो जेतुं प्रतस्थे स्थलवर्त्मना। 4/60 रघु ने भी पारसी राजाओं को जीतने के लिए स्थल-मार्ग पकड़ा। रथवर्त्म रजोऽप्यस्य कुत एव पताकिनीम्। 4/82 जब वह रथ मार्ग में उठती हुई धूल से ही घबरा गया, तो फिर सेना से वह लड़ता ही क्या। अथ जातु रुरोर्गृहीत वा विपिने पार्श्वचेरेलक्ष्यमाणः। 9/72 एक दिन जंगल में रुरु मृग का पीछा करते हुए, वे अपने साथियों से दूर भटक गए। तस्य जातु मरुतः प्रतीपगा वर्त्मसु ध्वजतरुप्रमथिनः। 11/58 एक दिन मार्ग में सेना के ध्वजरूपी वृक्षों को झकझोरने वाले वायु ने सारी सेना को व्याकुल कर दिया। एवमुद्यन्प्रभावेण शास्त्रनिर्दिष्ट वर्त्मना। 17/77 इस प्रकार शास्त्रनिर्दिष्ट मार्ग में चलने से उनका प्रभाव बढ़ गया। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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