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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 269 मार्ग में ही विश्वामित्र ने उन्हें बला और अतिबला नाम की दोनों विद्याएँ सिखा दी। तौ सुकेतुसुतया खिलीकृते कौशिका द्विदित शापया पथि। 11/14 वहीं मार्ग में उन्हें वह सुकेतु की कन्या ताड़का मिली, जिसने सारे मार्ग को उजाड़ बना दिया था और जिसके शाप की कथा विश्वामित्र ने पहले ही सुना दी थी। अथ पथि गमयित्वा क्लृप्तरम्योपकार्ये कतिचिदवनिपालः शर्वरी शर्वकल्पः । 11/93 तब शिव के समान राजा दशरथ ने कुछ रातें तो उस मार्ग में बिताईं, जहाँ उनके लिए सुन्दर डेरे तने हुए थे। क्वचित्पथा संचरते सुराणां क्वचिद्धनानां पततां क्वचिच्च। 13/19 कभी तो देवताओं के मार्ग में उडता चलता है, कभी बादलों के मार्ग में पहुँच जाता है और कभी पक्षियों के मार्ग में उड़ने लगता है। तथेति तस्याः प्रतिगृह्य वाचं रामानुजे दृष्टिपथं व्यतीते। 14/68 यह सुनकर लक्ष्मण बोले :-मैं सब कह दूँगा, यह कहकर ज्यों ही वे वहाँ से चलकर मार्ग से ओझल हुए कि। उद्यच्छमाना गमनाय पश्चात्पुरो निवेशे पथि च व्रजन्ती। 16/29 कुशावती से चलती हुई या आगे के पड़ाव में पहुँची हुई या मार्ग में चलने वाली। रेणुः प्रपेदे पथि पंकभावं पंकोऽपि रेणुत्वमियाय नेतुः। 16/30 मार्ग की धूल कीचड़ बन गई और कीचड़ भी धूल बन गयी। 4. मार्ग :-[मार्ग + घञ्] रास्ता, सड़क, पथ। नामधेयानि पृच्छन्तौ वन्यानां मार्गशाखिनाम्। 1/45 उनसे मार्ग के वनों और वृक्षों का नाम पूछते चलते थे। मार्ग मनुष्येश्वर धर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थं स्मृतिरन्व गच्छत्। 2/2 उसी मार्ग में नंदिनी के पीछे-पीछे चलती हुई रानी सुदक्षिणा ठीक वैसी ही लग रही थीं, जैसे श्रुति के पीछे-पीछे स्मृति चली जा रही हो। तस्यासीदुल्वणो मार्गः पादपैरिव दन्तिनः। 4/33 जैसे जंगली हाथी वृक्षों को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार शत्रुओं को नाश करके उन्होंने अपने मार्ग के सब रोड़े दूर कर डाले। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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