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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 266 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश गर्भ से दुबली माता कौशल्या, नन्हें से राम को लिए पलंग पर लेटी हुई ऐसी सुन्दर जान पड़ती थीं । मातृवर्ग चरणस्पृशौ मुनेस्तौ प्रपद्य पदवीं महौजसः । 11/7 माताओं के चरण छूकर, दोनों राजकुमार उन तेजस्वी मुनि के पीछे चलते हुए ऐसे शोभित होते थे । मम्लतुर्न मणि कुट्टिमोचितौ मातृ पार्श्व परिवर्तिनाविव । 11/9 जैसे मणियों से जड़े हुए अपने भवनों में अपनी माता के आसपास घूम रहे हों। मातुर्न केवलं स्वस्याश्रियोऽप्यासीत्परांगमुखः । 12/13 तब वे केवल अपनी माँ से ही नहीं वरन् अयोध्या की राज - लक्ष्मी से भी बड़े चिढ़ गए। मातुः पापस्य भरतः प्रायश्चित्तमिवाकरोत्। 12/19 मानो भरत जी ने अपनी माता के पाप का प्रायश्चित कर डाला हो । तच्चित्यमानं सुकृतं तवेति जहार लज्जां भरतस्य मातुः । 14/16 यह सुनकर भरत की माता के मन में जो आत्मग्लानि भरी हुई थी, वह सब जाती रही । सर्वासु मातृष्वपि वत्सलत्वात्स निर्विशेष प्रति पत्तिरासीत् । 14/22 वैसे ही रामचंद्र जी भी सभी माताओं को बराबर प्यार करते थे । शुश्रुवान्मातरि भार्गवेण पितुर्नियोगात्प्रहृतं द्विषद्वत् । 14 / 46 लक्ष्मण ने सुन ही रखा था कि पिता की आज्ञा पाकर परशुराम जी ने अपनी माता को वैसे ही निर्दयता से मार डाला था, जैसे कोई अपने शत्रु को मारे । रामस्य मधुरं वृत्तं गायन्तो मातुरग्रतः । 15/34 उन दोनों बालकों ने अपनी माता के आगे राम का यश गा-गाकर । स पितुः पितृमान्वंशं मातुश्चानुपमद्युतिः । 17/2 वैसे ही सुशिक्षित अतिथि ने माता और पिता के दोनों कुलों को पवित्र कर दिया । मारुति 1. पवन तनय :- [ पू+ ल्युट् + त्नयः] हनुमान का विशेषण, भीम का विशेषण । लंकानाथं पवनतनयं चोभयं स्थापयित्वा । 15 / 103 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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