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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 258 कालिदास पर्याय कोश मनोरथ 1. आशंसित :-[आ + शंस + इत] इच्छा, अभिलाषा, आशा। याज्यमाशंसिताबन्ध्यप्रार्थनं पुनरब्रवीत्। 1/86 तब वे अपने यजमान उन राजा दिलीप से बोले, जो अपनी प्रार्थना सफल कराने के लिए वहाँ आए हुए थे। 2. इष्ट :-[इष् + क्त] चाह, इच्छा । न हीष्टमस्य त्रिदिवेऽपि भूपतेरभूदनासाद्यमधिज्य धन्वनः। 3/6 क्योंकि धनुषधारी राजा दिलीप को स्वर्ग की भी वस्तुएँ मिल सकती थीं, फिर इस लोक की वस्तुओं की तो बात ही क्या। 3. ईप्सित :-[आप् + सन् + क्त] इच्छित, अभिलषित, प्रिय। न मे ह्रिया शंसति किंचिदीप्सितं स्पृहावती वस्तुषु केषु मागधी। 3/5 राजा दिलीप यह समझते थे कि सुदक्षिणा बड़ी सजीली है और अपनी इच्छा हमसे प्रकट नहीं करती है। अपीप्सितं क्षत्रकुलांगनानां न वीरसूशब्दम कामयेताम्। 14/4 उस समय वे रानियाँ अपने पुत्रों की चोटें देखकर इतनी व्याकुल हो गईं, कि उन्हें वीर पुत्र की माँ कहलाना भी अच्छा नहीं लगा। 4. कांक्षित :-कामना करना, चाहना, लालायित होना। सद्य एव सुकृतां हि पच्यते कल्पवृक्षफलधर्मि कांक्षितम्। 11/50 ठीक भी है, पुण्यवानों की अभिलाषा कल्पवृक्ष के समान तत्काल फल देने वाली होती भी है। 5. मनोरथ :-[मन्यतेऽनेन मन करणे असुन्] कामना, चाह। विलम्बितफलैः कालं स निनाय मनोरथैः। 1/33 दिन बीतते चले जा रहे थे और उनकी साध पूरी नहीं हो पा रही थी। ययावनुद्धातसुखेन मार्ग स्वेनेव पूर्णेन मनोरथेन। 2/72 इसलिए उस पर सुख से चढ़कर जाते हुए वे ऐसे लगते थे मानो वे अपने सफल मनोरथ पर बैठे हुए जा रहे हों, रथ पर नहीं। कपयश्चेरुरार्तस्य रामस्येव मनोरथाः। 12/59 जैसे विरही राम का मन सीताजी की खोज में इधर-उधर भटकता था, वैसे ही वानर भी इधर-उधर घूमकर सीताजी की खोज करने लगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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