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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 242 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश तमधिगम्य तथैव पुनर्वभौ न न महीन महीन पराक्रमम् । 9/5 उसी प्रकार उन्हीं दोनों के समान दशरथ को पाकर पृथ्वी की शोभा न बढ़ी हो, यह बात नहीं है । वेपमान जननी शिरश्छिदा प्रागजीयत घृणा ततो मही । 11/65 अपनी काँपती हुई माता का सिर काट लिया था, उस समय उन्होंने पहले तो घृणा को जीत लिया और फिर पृथ्वी को जीत लिया था । तस्मिन्कुला पीड निभे विपीडं सम्यंगमहीं शासति शासनांकाम् । 18/29 भी संतान वाले ब्रह्मिष्ठ भी अपने कुल के शिरोमणि थे, उन्होंने बड़ी योग्यता से पृथ्वी का शासन किया। महीं महेच्छः परिकीर्य सूनौ मनीषिणे जैमिनयेऽर्पितात्मा । 18 / 33 उन्होंने पृथ्वी का भार अपने पुत्र को सौंप दिया और स्वयं जैमिनी ऋषि के शिष्य होकर | 13. मेदिनी : - [ मेद् +इन् + ङीप् ] पृथ्वी । न माम वति सद्वीपा रत्नसूरपि मेदिनी । 1/65 तब रत्नों को पैदा करने वाली, कई द्वीपों में फैली हुई अपने राज्य की पृथ्वी भी मुझे अच्छी नहीं लग रही है। नितम्ब मिव मेदिन्या स्त्रस्ताशं कमलंघयत् । 4/52 मानो वह पृथ्वी का नितम्ब हो और जिस पर से कपड़ा हट गया हो । विशदोच्छ्वसितेन मेदिनी कथयामास कतार्थतामिव । 8/3 उसके कारण पृथ्वी से जो भाप निकली, वह मानो यह सूचित करती हो कि उसे भी संतोष है। अचिरोपनतां स मेदिनीं नव पाणिग्रहणां वधूमिव । 8/7 नई पाई हुई पृथ्वी का पालन दयालुता के साथ प्रारंभ किया कि कहीं नई ब्याही हुई बहू के समान वह घबरा न जाये । ननु तैलनिषेक बिन्दुना सह दीपार्चिरुपैति मेदिनीम् । 8/38 क्योंकि गिरते हुए तेल की बूँदों के साथ क्या दीपक की लौ पृथ्वी पर नहीं गिर पड़ती। For Private And Personal Use Only अजयदेक रथेन स मेदिनी मुदधिनेमिमधिज्य शरासनः । 9/10 एक धनुष लेकर और अकेले एक रथ पर चढ़कर ही उन्होंने समुद्र तक फैली हुई सारी पृथ्वी जीत ली ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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