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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 236 कालिदास पर्याय कोश 4. साधिराज :-[सृप+घञ्+अधिराजः] शेषनाग। साधिराजोरुभुजोऽपसर्प पप्रच्छ भद्रं विजितारिभद्रः। 14/1 सदाचारी और शेषनाग के समान बड़ी बाँहों और जाँघों वाले शत्रु विजयी राम ने अपने भद्र नाम के दूत से पूछा। भूमि 1. अवनि :-[अव+अनि, पक्षे ङीष्] पृथ्वी, भूमि। अवनिमेक रथेन स मेदिनी मुदधिनेभिमाधिज्यशरासनः। 9/10 एक धनुष लेकर और अकेले एक रथ पर चढ़कर ही उन्होंने समुद्र तक फैली हुई सारी पृथ्वी जीत ली। तेयाच्छान्तव्यालामवनिमपरः पौरकान्तः शशास। 16/88 जिससे सर्प शान्त हो गए और कुश पृथ्वी पर भली-भाँति राज करने लगे। 2. उपत्यका :-[उप+त्यकन्-पर्वतस्यासन स्थलमुपत्यका-सिद्धा०] तलहटी, निम्नभू-भाग। मारी चोद्धान्त हारीता मलयातरुपत्यकाः। 4/46 मलयाचल की उस भूमि (तराई) में उतरे, जहाँ काली मिर्च की झाड़ियों में हरे-हरे सुग्गे इधर-उधर उड़ रहे थे। 3. उर्वी :-[उणु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, ङीष्] विस्तृतप्रदेश, भूमि। अनन्यशासनमुर्वी शशासैक पुरीमिव। 1/30 जैसे कोई एक नगरी पर शासन करता है, तो वैसे ही राजा दिलीप ने पूरी पृथ्वी पर अकेले राज्य करते थे। पुरा शक्रमुपस्थाय तवोर्वी प्रति यास्यतः। 1/75 हे राजन! बहुत दिन हुए कि एक बार जब तुम स्वर्ग से इन्द्र की सेवा करके पृथ्वी को लौट रहे थे। पयोधरीभूत चतुः समुद्रां जुगोप गोरूपधरा मिवोर्वीम्। 2/3 मानो साक्षात् पृथ्वी ने ही गौ का रूप धारण कर लिया हो और जिसके चारों थन ही पृथ्वी के चार समुद्र हों। तदर्थमुर्वीमवदारयद्भिः पूर्वैः किलायं परिवर्धितो नः। 2/3 उस समय सगरजी के पुत्रों ने घोड़े की खोज करने के लिए सारी पृथ्वी खोद डाली, उसी से यह समुद्र इतना लंबा-चौड़ा हो गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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