SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 कालिदास पर्याय कोश कुछ दिन पीछे राम ने अश्वमेघ यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा वैसे ही सुग्रीव, विभीषण आदि ने। वेदिप्रतिष्ठान्वितताध्वराणां यूपानपश्यच्छतशो रघूणाम्। 16/35 वहाँ उन्हें बड़े-बड़े यज्ञ करने वाले रघुवंशी राजाओं के गाड़े हुए सैकड़ों यज्ञ के खंभे दिखाई दिए। 2. इष्टि :-[इष्+क्तिन्] यज्ञ, कामना, प्रार्थना । आरेभिरे जितात्मनः पुत्रीयामिष्टि मृत्विजः। 10/4 ऋषियों ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करना प्रारंभ कर दिया। 3. क्रतु :-[कृ+क्तु] यज्ञ। अजस्त्रु दीक्षाप्रयतः स मद्गुरुः क्रतो रक्षेषेण फलेन युज्यताम्। 3/65 यही वरदान दीजिए कि इस घोड़े के बिना ही सौ अश्वमेध यज्ञ करने का फल पा जायें। क्रतुषु तेन विसर्जितमौलिना भुजसमाह्यतिदग्वसुना कृताः। 9/20 उन्होंने अपने बाहुबल से चारों ओर का धन इकट्ठा किया था, उन्होंने ही अपना मुकुट उतार कर अश्वमेध यज्ञ करते समय। तस्या एव प्रतिकृतिसखो यत्क्रतूनाजहार। 14/87 अश्वमेध यज्ञ करते समय उन्होंने सीता जी की सोने की मूर्ति को ही अपने बाएँ बैठाया था। 4. मख :-[मख् संज्ञायां घ] यज्ञ, यज्ञविषयक कृत्य। ततः परं तेन मखाय यज्वना तुरंग मुत्सृष्टमनर्गलं पुनः। 3/39 तब दिलीप ने सौवाँ यज्ञ करने के लिए घोड़ा छोड़ा। मखांशभाजा प्रथमो मनीषिभिस्त्वमेव देवेन्द्र सदा निगद्यसे। 3/44 हे देवेन्द्र ! विद्वानों का कहना है कि यज्ञ का भाग सबसे पहले आपको ही मिलता है। त्रिलोकनाथेन सदा मखद्विषस्त्वया नियम्या ननु दिव्य चक्षुषा। 3/49 संसार में जो कोई भी यज्ञ में विघ्न डाले, उसे आप स्वयं दण्ड दें क्योंकि आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं। स्थाने भवानेक नराधिपः सन्मकिंचनत्वं मखजं व्यनक्ति। 5/16 चक्रवर्ती होते हुए भी यज्ञ में सब कुछ देकर और दरिद्र होकर आप। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy