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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 225 रघुवंश सा किला श्वासिता चण्डी भर्ना तत्संश्रुतौ वरौ। 12/5 जब पति राजा दशरथ ने उस कठोर स्वभाव वाली कैकेयी को बहुत मनाया, तब उसने दो वर माँगे। इत्युक्त्वा मैथिली भर्तुरंके निविशती भयात्। 12/38 सीताजी तो यह सुनते ही डरके मारे अपने पति की ओट में जा छिपी। तस्यै भुर्तराभिज्ञानमंगुलीयं ददौ कपिः। 12/62 उनके पास जाकर हनुमानजी ने उनके पति राम की अंगूठी उन्हें दी। भर्तृः प्रणाशादथ शोचनीयं दशान्तरं तत्र समं प्रपन्ने। 14/1 उस उपवन में पहुंचकर राम अपनी माताओं से मिले, जो अपने पति की मृत्यु के कारण, उसी प्रकार उदास लग रही थीं। क्लेशावहा भर्तुरलक्षणाहं सीतेति नाम स्वमुदीरयन्ती। 14/5 मैं ही पति को कष्ट देने वाली कुलक्षणा सीता हूँ, यह कहते हुए सीताजी ने। उत्तिष्ठ वत्से ननु सानुजौऽसौ वृत्तेन भर्ता शुचिना तवैव। 14/6 उठो बेटी ! तेरे ही पतिव्रत के प्रभाव से राम और लक्ष्मण इस बड़े भारी संकट से पार हुए हैं। रराज शुद्धेति पुनः स्वपुर्यं संदर्शिता वह्निगतेव भा। 14/14 मानो पुरवासियों को सीताजी की शुद्धता दिखलाने के लिए पति राम ने उन्हें फिर अग्नि में बैठा दिया हो। न चावदद्भर्तुरवर्णमार्या निराकरिष्णोर्वृजिनादृतेऽपि। 14/57 वे इतनी साध्वी थी कि निरपराध पत्नी को निकालने वाले अपने पति को, उन्होंने कुछ भी बुरा-भला नहीं कहा। निशाचरो पप्लुत भर्तृकाणां तपस्विनीनां भवतः प्रसादात्। 14/64 पिछली बार आपकी कृपा से मैंने वनवास के समय बहुत सी ऐसी तपस्विनयों को अपने यहाँ आश्रय दिया था, जिनके पतियों को राक्षसों ने सता रक्खा था। भूयो यथा मे जननान्तरेऽपि त्वमेव भर्ता न च विप्रयोगः। 14/66 अगले जन्म में भी आप मेरे पति हों, आपसे मुझे अलग न होना पड़े। जाने विसृष्टां प्रणिधानतस्त्वां मिथ्यापवादक्षुभितेन भर्चा। 14/72 बेटी ! मैंने योगबल से यह जान लिया है कि तुम्हारे पति ने झूठे अपजस से डरकर, तुम्हें घर से निकाल दिया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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