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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 216 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश इन्दुमती ने जब उस सर्वांग सुन्दर राजा अज को देखा, तब वह वहीं रूक गई और फिर किसी राजा के आगे नहीं जा सकीं। 1 प्रभानुलिप्त श्रीवत्सं लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम् । 10/10 जिसमें लक्ष्मीजी शृंगार के समय अपना मुँह देखा करती हैं और जिसकी चमक मृगु के चरण के प्रहार से बना हुआ श्रीवत्स चिह्न चमक उठता था । हेमपक्ष प्रभाजालं गगने च वितन्वता । 10 / 61 अपने सोने के पंखों से प्रकाश फैलाता हुआ, अपने वेग के कारण हमें आकाश में उड़कर ले जा रहा है। स नादं मेघनादस्य धनुश्चेन्द्रायुधप्रभम्। 12/79 वैसे ही लक्ष्मण भी मेघनाद के गर्जन को और इन्द्रधनुष के समान धनुष को क्षण भर में ले बीते । क्वचित्प्रभा चान्द्रमसी तमोभिश्छाया विलीनैः शबलीकृतेव । 13 /56 कहीं-कहीं ये वृक्ष के नीचे की उस चाँदनी के समान लगती हैं, जिसके बीच-बीच में पत्तों की छाया पड़ी हो। शतह्रदमिव ज्योति: प्रभामण्डलमुद्ययौ । 15 / 82 उसमें से बिजली के समान चमकीला एक तेजोमंडल निकला। प्रत्यूपुः पद्मरागेण प्रभामंडल शोभिना । 17/23 उन्होंने वह पद्मरागमणि बाँधी, जिसकी सुंदर चमक चारों ओर फैल गई। तस्य प्रभानिर्जितपुष्परागं पौष्पां तिथौ पुष्यमसूत पत्नी । 18/32 राजा पुत्र की पत्नी से पूस की पूर्णिमा के दिन पद्मरागमणि से भी अधिक कांतिमान नामक पुत्र हुआ । 7. शोभा : - [ शुभ्+अ+टाप्] प्रकाश, कान्ति, दीप्ति, चमक । नाम्भसां कमलशोभिनां तथा शाखिनां च न प्रपरिश्रमच्छिदाम् । 11/12 कमलों से भरे हुए सरोवरों तथा थकावट हरने वाले वृक्षों की छाया को देखकर भी । राजेन्द्र नेपथ्य विधान शोभा तस्योदिताऽऽसीत्पुनरुक्तदोषा । 14 / 9 वे इस समय राजसी वस्त्र पहनकर और भी सुंदर लगने लगे। 8. श्री : - [ श्रि + क्विप्, नि०] सौन्दर्य, चारूता, लालित्य, कान्ति । पुरंदर श्रीः पुरमुत्पताकं प्रविश्य पौरेरभिनन्द्यमानः । 2/74 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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